कलात्मक और मनोरंजक इतिहास है जूतों का

हममें से शायद ही कोई ऐसा होगा जो जूतों से अपरिचित हो लेकिन जूतों के रंजक मनोरंजक इतिहास से कुछ ही परिचित होंगे। यह कब से प्रचलन मेंआया, इसको पहनने की शुरूआत कब हुई, यह भी रोचक किस्सा है। जातक कथाओं के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि शरीर और आराम के लिए जूतोंकी खरीदारी जरूरी है। प्राचीन समय में शेर, हिरण और चीते की खाल के भी जूते बनाए जाते थे। ’काम जातक‘ की कथा में कहा गया है कि धनवान लोग अपनी चप्पलों औरजूतों पर चांदी और सोने के आभूषण भी सजाया करते थे। गुप्तकाल में भारी बूटों की अपेक्षा हल्के बूटों का प्रचलन काफी बढ़ गया था। ये जूते काफी कलात्मक हुआ करते थे।  अंग्रेजी शासन ने जब तक भारत में अपने पैर जमाए, तब तक बड़ी-बड़ी कम्पनियां बाजार में जूतों को लाई थी। अनेकों किस्म के जूते चप्पल बनने लगे थे। आज काफी संख्या में कानपुर, आगरा, फरीदाबाद, ग्वालियर, दिल्ली, मुम्बई आदि शहर जूता चप्पल उद्योग में विश्वविख्यातहैं।

(उर्वशी)