नीलगिरि ताहर पर विलुप्त होने के मंडराते खतरे

नीलगिरि ताहर दक्षिण भारत में पाया जाने वाला एक ऐसा दुर्लभ प्रजाति का पशु है, जिसे कुछ लोग हिरन मानते हैं तो कुछ इसे ‘पहाड़ी बकरी’ की प्रजाति का कहते हैं। जीव विज्ञान की भाषा में इसका नाम हेमीट्रागस हाइलोक्रियस है। इसे ‘आईयूसीएन’ द्वारा संरक्षित घोषित कर दिया गया है, क्योंकि नीलगिरि ताहर अब विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुका है। 1970 और 80 के दशक में इसकी संख्या लगभग 2 से 2.5 हजार के बीच थी। 1989 में इसकी संख्या में काफ ी घटोतरी देखी गई। 2007 में हुई जनगणना के अनुसार इसकी संख्या 2000 से भी कम रह गई है। नीलगिरि ताहर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह प्राणी मात्र हमारे देश में ही पाया जाता है। यह पश्चिमी घाट, केरल के इरावीकुलम, तमिलनाडु के दक्षिण में नीलगिरि पर्वत श्रृंखला में पाया जाता है। कर्नाटक के दक्षिणी पश्चिमी भाग में ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में 1200 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। नर ताहर की ऊंचाई लगभग 100 सेंटीमीटर तथा भार लगभग 100 किलोग्राम होता है। इसका रंग भूरा, चाकलेटी होता है। इसके सींग पीछे की ओर मुड़े होते हैं, जो दिखने में बहुत खूबसूरत होते हैं। इनकी लंबाई 30 से 40 सेंटीमीटर तक होती है। मादा ताहर का आकार कुछ छोटा तथा भार कुछ कम होता है। नीलगिरि ताहर दिन के समय घास के हर भरे मैदानों में घास चरते दिखाई देते हैं या शाम के समय भी यह सक्रिय रहते हैं। केरल का पर्वतीय पर्यटन स्थल मुन्नार अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। मुन्नार से 20 किलोमीटर की दूरी पर इरावीकुलम नामक एक स्थान पर नीलगिरि ताहर की अभयारण्य स्थली बनायी गई है, जहां पर यह जीव चट्टानों पर इधर-उधर छलांग लगाते देखे जाते हैं। इसके अलावा नीलगिरि ताहर को संरक्षित करने के लिए साइलेंटवेली नेशनल पार्क, मुकुर्ति, अन्नामलाई और पाराम्बीकुलम वाइल्ड लाइफ  सेंचुरी में नीलगिरि ताहर को संरक्षित करने की दिशा में प्रयास किये गये हैं। पूरी दुनिया में एकमात्र भारत में पाये जाने वाले नीलगिरि ताहर पर निरंतर अध्ययन और निरीक्षण की जरूरत है क्याेंकि इसकी लगातार कम होती आबादी एक चिंता का विषय है।
विलुप्त होने के मंडराते खतरे
नीलगिरि ताहर का अत्याधिक, अवैध शिकार इसके विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण है। इसके अलावा इनके आवासीय क्षेत्रों में हरी-घास की तलाश में आने वाले लोगों का दखल, जंगलों का सफाया भी इनकी घटती आबादी की एक बड़ी वजह है। इनकी कम होती आबादी का एक बड़ा कारण इनके हरे भरे घास के मैदानों में दूसरे पालतू पशुओं की घुसपैठ के चलते भोजन की अनुपलब्धता की वजह से भी यह खेतों की ओर आ जाते हैं और इनका शिकार कर लिया जाता है। हाल फिलहाल तक नीलगिरि ताहर जैसे दुर्लभ प्रजाति के जीव के संरक्षण के लिए जो भी उपाय किये जा रहे हैं वह पर्याप्त नहीं हैं। इन्हें अगर विलुप्त होने से बचाना है तो इन्हें इस तरह संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि इनके अवैध शिकार पर रोक लग सके। क्योंकि अवैध शिकार के कारण ही यह विलुप्ति के संकट से जूझ रहे हैं।

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