भारत की उपेक्षा कर अमरीका ने पाक को दी सैन्य मदद

अमरीका फर्स्ट की पॉलिसी के तहत अमरीका अपने हितों की रक्षा करने के लिए किसी भी हद तक जा
सकता है। अमरीका को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी दूसरे देश पर इससे क्या फर्क पड़ता
है। बेशक अमरीकी नीति से प्रभावित होने वाला देश उसके मित्रों की सूची में ही क्यों न शामिल हो।
कहने को अमरीका भारत को अपना दोस्त बताता है परन्तु उसने ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू जेट
बेड़े के रखरखाव के लिए 450 मिलियन अमरीकी डालर की सहायता की मंजूरी दी है। कहने को यह
राशि आतंकवाद को रोकने के लिए दी गई है, जबकि अमरीका इस बात को अच्छी तरह जानता है कि
पाकिस्तान किसी ओर को नहीं बल्कि भारत को ही अपना दुश्मन नम्बर एक समझता है। यह निश्चित
है कि जब कभी युद्ध के दौरान पाकिस्तान एफ-16 युद्धक विमानों का उपयोग भारत के खिलाफ ही
करेगा। 
पाकिस्तान यह बात साबित भी कर चुका है। पुलवामा हमले के बाद भारत की ओर से सीमा पार के
आतंकी कैम्पों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर जवाबी हमला करने के लिए पाकिस्तान ने एफ-16 का
इस्तेमाल किया था। मौजूदा सैन्य सहायता को लेकर भारत ने अमरीका के समक्ष तगड़ा विरोध दर्ज
कराया है। यह बात दीगर है कि भारत के इस विरोध के बावजूद अमरीका इतनी बड़ी कमाई आसान से
नहीं छोड़ेगा। यही अमरीका की नीति रही है। इसी वजह से विरोध के बावजूद पाकिस्तान को मिलने
वाली सैन्य सहायता के रद्द होने की संभावना क्षीण है।
अमरीका यह भी बखूबी जानता है कि पाकिस्तान ही आतंकियों का पोषक रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने
आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करते हुए
पाकिस्तान से उसके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। गौरतलब है कि मसूद अज़हर भारतीय संसद
और पुलवामा हमले का मुख्य आरोपी है। वह पाकिस्तान में रह कर लंबे समय से भारत के खिलाफ
आतंकी कार्रवाई को अंजाम दे रहा है। कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से की जाने वाली आतंकी कार्रवाई
इस बात का प्रमाण हैं। इसके बावजूद अमरीका पाकिस्तान को सैन्य मदद देने को आमदा है। इससे
साफ ज़ाहिर है कि अमरीका भारत के साथ जिस सहयोग की भावना का दंभ भरता है, वह खोखली है। 
सवाल जब अपने हितों का हो तो अमरीका युद्ध छेड़ने, कमांडो कार्रवाई और ड्रोन हमले से भी नहीं
चूकता। अफगानिस्तान और इराक में युद्ध, ओसामा बिन लादेन और अल जवाहरी का मारा जाना इसका
प्रमाण है। 
यह पहला मौका नहीं है जब अमरीका ने मौकापरस्ती दिखाई हो। इससे पहले भी अमरीका अपने आर्थिक
हितों को साधने के लिए भारत की बाजू मरोड़ता रहा है। साल 1980 में पाकिस्तान को तत्कालीन
अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने पहली बार एफ-16 लड़ाकू विमान दिए थे। हालांकि भारत ने तब भी
इन विमानों को दिए जाने पर गहरी नाराज़गी जताई थी, पर अमरीका ने इसे दरकिनार कर दिया था।
इससे अमरीका को करोड़ों डालर की आय हो रही थी। यह बात भी दीगर है कि पाकिस्तान पहले से ही
कंगाली के हालात से जूझ रहा है। पिछले दिनों बाढ़ ने पाकिस्तान का काफी नुक्सान किया है। इसके
बावजूद भारत से दुश्मनी निकालने के लिए वह बर्बादी की हद तक जा सकता है। भले ही सैन्य सामग्री
खरीदने के लिए उसे कज़र् पर कज़र् क्यों न लेना पड़े। इस दुश्मनी की भावना की वजह से घरेलू
हालात से निपटने के बजाए पाकिस्तान का सारा ध्यान भारत के नुकसान पर केन्द्रित रहता है।
अमरीका ने इससे पहले ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच भारत के ईरान से कच्चा तेल आयात
करने पर भी नाराज़गी जताई थी, जब कि ईरान भारत को सस्ता तेल मुहैया करा रहा था। अमरीका ने
भारत को इसका विकल्प मुहैया नहीं कराया, बल्कि भारत से रिश्ते बिगड़ने की धमकी दी थी। भारत ने
भी अमरीकी धमकी को दृष्टिविगत कर दिया था। गौरतलब है कि अमरीका विश्व का सबसे बड़ा हथियार
निर्यातक है। वर्ष 2017 से 2021 की अवधि में हथियारों का निर्यात 38.6 प्रतिशत रहा है। अमरीका को
इससे फर्क नहीं पड़ता कि इन हथियारों को दूसरे देश कैसे इस्तेमाल करेंगे। उसे सिर्फ अपने हितों की
सुरक्षा से वास्ता है। 
दरअसल अमरीका को इस बात की भी पेशानी है कि भारत रूस की तरफ हाथ क्यों बढ़ा रहा है। पिछले
दिनों ही भारत, रूस और चीन ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किया था। इससे पहले रूस के यूक्रेन पर हमले
को लेकर अमरीका आक्रामक रहा है। ऐसे ही रुख की अपेक्षा अमरीका भारत से भी कर रहा था, किन्तु
भारत ने अपने भविष्य के रिश्तों के मद्देनज़र अमरीका की बात को अनसुनी कर दिया। भारत ने इस
मुद्दे पर संतुलित प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि इसका समाधान हिंसा से नहीं बातचीत से किया
जाना चाहिए। अमरीका फर्स्ट नीति की सुरक्षा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है।  
अमरीका की भारत के साथ दोस्ती महज दिखावा भर है। अमरीकी मोटर साइकिल हार्ली डेविडसन को
भारत में निर्यात करने के लिए अमरीका ने भारत पर टैक्स कम करने का पूरा दवाब बनाया था।
अमरीका अपने हितों को सर्वोपरि रख कर चाहता है कि भारत आंख बंद करके उसका पिछलग्गू बना रहे।
अमरीका यह भूल जाता है कि चीन की विस्तारवादी नीति में भारत ही उसका प्रभावी रणनीतिक साझेदार
हो सकता है। भारत की विदेश नीति बदले हुए वैश्विक दौर के हिसाब से बदल गई है। भारत भी अब
अमरीका की तरह भारत फर्स्ट की नीति पर आगे बढ़ रहा है। यह निश्चित है कि अमरीका चाहे जितनी
भारत की उपेक्षा करे पर मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में भारत को साधे रखना उसकी मजबूरी होगी।