स्थापित अकाली नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है शिरोमणि कमेटी के प्रधान का चुनाव

वो रहेगा इस तऱफ या उस तऱफ इस इम्तिहान में,
एक नतीजा आएगा एक ़फैसला हो जाएगा।
9 नवम्बर, 2022 को होने वाले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के प्रधान के चुनाव का मामला इस बार आम जैसा नहीं रहा। इस बार अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को पहली बार कड़ी चुनौती मिल रही प्रतीत होती है। इस बार का प्रधानगी का चुनाव सुखबीर सिंह बादल की पंजाब की राजनीति में किस्मत हेतु निर्णायक साबित हो सकता है। विगत लम्बी अवधि से अकाली दल बादल की छवि नीचे की ओर जा रही है। परन्तु इसके विरुद्ध जिन नेताओं ने ब़गावत की वह अपना कोई विशेष प्रभाव नहीं बना सके। बादल विरोधी एक तो आपस में कभी इकट्ठे नहीं हो सके और दूसरा बादल दल से नेता तो टूटते रहे हैं परन्तु सुखबीर अपना केडर साथ रखने में सफल रहे हैं। बादल परिवार तथा अकाली दल की छवि कमज़ोर करने के कारण तो शायद कई दर्जन होंगे परन्तु फिर भी जिन मुख्य कारणों से अकाली का नुकसान हुआ है, उनमें बादल दल का पंजाब तथा सिखों की परम्परागत मांगों से पीछे हट जाना है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं तथा डेरा सिरसा प्रमुख के प्रति अकाल तख्त की पहुंच के अलावा अकाली दल में फैला परिवारवाद, अमीर व्यक्तियों को आगे लाने आदि प्रमुख कारणों के रूप में देखे जा सकते हैं। परन्तु इसके बावजूद बादल दल से टूट कर आने वाले नेता भी लोगों का विश्वास नहीं जीत सके।
ऐसी स्थिति में प्रभाव बना कि अकाली दल के पुनर्जीवन के लिए बादल परिवार का कुछ समय के लिए नेतृत्व से पीछे हटना ज़रूरी है। परन्तु सच्चाई यह है कि बादल अकाली दल के ज्यादातर मौजूदा नेता सुखबीर सिंह बादल के साथ रहे तथा उन्हें अध्यक्ष पद न छोड़ने हेतु ही प्रेरित करते रहे। स्वयं सुखबीर सिंह बादल भी कुछ समय के लिए अध्यक्ष पद से  हटने के लिए तैयार नहीं हुए, अपितु उन्होंने यह कहा कि वह अध्यक्ष पद नहीं छोड़ेंगे। इस दौरान इकबाल सिंह झूंदा कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर युवाओं का जो दल सुखबीर सिंह बादल को ‘कुछ समय’ हेतु अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए कह रहा था, वह भी चुप हो गया दिखाई देता है।
परन्तु इसके बावजूद अब स्थिति अलग है। चाहे शिरोमणि कमेटी की प्रधानगी के चुनाव का प्रत्यक्ष रूप से पंजाब के लोगों के साथ कोई संबंध नहीं, क्योंकि यहां वोट तो सिर्फ शिरोमणि कमेटी के सदस्यों ने डालने हैं। परन्तु फिर भी जहां इस बार लगभग सभी बादल विरोधी बीबी जगीर कौर के पीछे एकजुट हो रहे हैं, वहीं बीबी जगीर कौर जो पहले भी लगभग 4 बार शिरोमणि कमेटी की प्रधान रह चुकी हैं तथा पूर्व मंत्री भी हैं, यह प्रभाव दे रही हैं कि बादल दल के भीतर बड़ी संख्या में वोट उन्हें पड़ेंगी। हालांकि प्रत्यक्ष रूप से बादल दल का कोई नेता उनकी सहायता में नहीं खड़ा हुआ। परन्तु बीबी समर्थक बादल के कुछ बड़े नेताओं की ओर संकेत ज़रूर कर रहे हैं कि वह भीतर से बीबी जगीर कौर को वोट डालेंगे। परन्तु जब उन नेताओं के साथ सम्पर्क किया गया तो अपनी बातचीत में उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया।
हमारी जानकारी के अनुसार इस बार सुखबीर सिंह बादल 6 नवम्बर तक किसी भी समय मौजूदा शिरोमणि कमेटी के प्रधान हरजिन्दर सिंह धामी को अकाली दल का अधिकारिक उम्मीदवार घोषित कर सकते हैं। जबकि ऐसे संकेत भी मिले हैं कि इस बार वह ल़िफ़ाफा सभ्याचार के दोषों को खत्म करने हेतु शिरोमणि कमेटी के अन्य पदों के अकाली उम्मीदवारों या कम से कम दूसरे सबसे बड़े समझे जाते महासचिव के पद  के उम्मीदवार का नाम भी प्रधानगी उम्मीदवार के नाम के साथ ही घोषित करने पर गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। यह भी जानकारी मिली है कि सुखबीर सिंह बादल लगभग 5 विपक्षी दल के शिरोमणि कमेटी सदस्यों को अकाली दल बादल में शामिल करवाने के प्रयास में हैं।
हम समझते हैं कि इस बार का शिरोमणि कमेटी की प्रधानगी का चुनाव परिणाम सुखबीर सिंह बादल के राजनीतिक भविष्य का फैसला करेगा। यदि अकाली दल बादल यह चुनाव भारी अंतर से जीत गया तथा वह अपनी वोटें बचाने में सफल रहा तो उनके पांव फिर से पंजाब तथा सिख राजनीति में टिकने की सम्भावनाएं बन सकती हैं। चाहे यह अधिक आसान नहीं है, उनके जीतने के बाद भी कौम तथा पंजाबियों में फिर से अपना विश्वास बहाल करने हेतु उन्हें लम्बा स़फर तय करना पड़ेगा। जहां आज भी ‘की गईं या हुईं’ गलतियों के लिए माफी मांगनी पड़ेगी, वही क्रियात्मक रूप में पंजाब तक तथा सिखों की मांगों के लिए संघर्ष करना भी ज़रूरी होगा। दूसरी तरफ यदि बीबी जगीर कौर जीत जाती हैं तो वह  प्रत्यक्ष रूप से ही कौम का नेतृत्व करने वाली नेता बन जाएंगी। परन्तु समझा जाता है कि यदि वह हार भी जाती हैं और अकाली दल बादल की 25-30 वीटें तोड़ लेती हैं तो वह बादल विरोधी नेता के रूप में स्थापित हो जाएंगी। परन्तु यदि वह बादल विरोधियों की 25 वोटों के आस-पास ही रहती हैं तो वह भी  पहले बादल दल छोड़ने वाले नेताओं की पंक्ति में खड़ी हो जाएंगी। 
अब वास्तव में होता क्या है, इसका फैसला तो समय ही करेगा।
नवम्बर ’84 सिख कत्लेआम
तेरी ज़फा-ओ-ज़ुल्म का चर्चा कहां नहीं?
ऐसी कोई ज़मीं है जहां आसमां नहीं?
1984 के सिख कत्लेआम दिल्ली या भारत के माथे पर लगा हुआ बदनुमा द़ाग नहीं, अपितु यह मानवीय इतिहास के काले पृष्ठों में भी शुमार होता है। ज्यादातर पहले भी यह मांग की गई है कि दिल्ली के सिख कत्लेआम की वास्तविकता सामने लाने हेतु एक ट्रुथ आयोग बनाया जाये। परन्तु हर बार इसे अनदेखा एवं अनसुना कर दिया गया है। इस बार यह अच्छी बात है कि यह मांग देश पर शासन कर रही पार्टी के मुख्य प्रवक्ता तथा इस संबंध में न्याय की लड़ाई से जुड़े रहे प्रमुख वकील ने भी की है। भाजपा नेता आर.पी. सिंह तथा वकील एच.एस. फूलका की यह मांग बिल्कुल उचित है कि 1984 के सिख कत्लेआम से जुड़ीं सभी फाइलें सार्वजनिक की जाएं ताकि सच्चाई लोगों के सामने आ सके। विश्व के विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न समुदायों पर हुए ज़ुल्मों की सच्चाई जानने के लिए बने ट्रूथ आयोगों की एक लम्बी सूची है। जिनमें से लगभग 50 ट्रूथ एंड रिस्सीलेशन आयोगों (सच्च एवं पुन: सहयोग आयोग) के संबंध में तो हमने पढ़ा भी है। इसलिए हम आशा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कम से कम अपनी पार्टी के नेताओं द्वारा उठाई एक अधिकार की बात तो मान ही लेंगे। 
परन्तु यहां हम कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष तथा आजकल कांग्रेस में कथित रूप से ‘महात्म गांधी की’ भूमिका निभा रहे, राहुल गांधी को कहना चाहते हैं कि वह भी ज़रा अपनी आत्मा की आवाज़ सुनें तथा स्वयं आगे आकर संसद में 1984 के  सिख कत्लेआम के लिए संसद द्वारा माफी मांगने का प्रस्ताव पेश करें। क्योंकि इस मामले में सबसे अधिक अंगुलियां उनके पारिवारिक सदस्यों की ओर ही उठती रही हैं। हमें पता है कि राहुल गांधी निजी तौर पर कई बार श्री दरबार साहिब अमृतसर में पहुंच कर इसके लिए माफी की अरदास कर चुके हैं, परन्तु यदि वह कांग्रेस के एक मार्ग दर्शक की भूमिका निभाना चाहते तो उन्हें महात्मा गांधी के पद-चिन्हों पर चलते हुए संसद में 1984 के सिख कत्लेआम के लिए माफी का प्रस्ताव लाने की भी पहल करनी चाहिए और ट्रुथ कमिशन की स्थापना का भी समर्थन करना चाहिए। इससे उनका कद राजनीति में ही नहीं सभ्यक समाज में भी ऊंचा होगा, अपितु हम तो यह भी चाहेंगे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पहल करें और 2002 के गुजरात दंगों संबंधी भी एक ट्रुथ कमिशन बनाने तथा फाइलें सार्वजनिक करने की घोषणा करें। इससे एक ओर तो देश के अल्पसंख्यकों का प्रधानमंत्री पर टूटता विश्वास भी बहाल होगा और दूसरा लोकतांत्रिक दुनिया में भारत का सम्मान भी बढ़ेगा। 
मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूं अपना मातम करने के लिए, 
मेरी आंखों में आंसू आये तेरी आंखें नम करने के लिए।
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
-मो. 92168-60000 

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