राजनीतिक दलों का कुनबा बढ़ाओ अभियान

लगभग दस महीने बाद 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की बिसात बिछने लगी है। विपक्षी दलों का जहां यह प्रयास है कि इस बार किसी भी तरह आपसी मतभेदों को भुलाकर भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध एक राष्ट्रव्यापी गठबंधन तैयार किया जाये, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा भी न सिर्फ संगठनात्मक स्तर पर स्वयं को मज़बूत करने में जुटी हुई है, बल्कि कई क्षेत्रीय दलों से गठबंधन की योजना पर भी काम कर रही है। खासतौर पर आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में चंद्र बाबू नायडू की उसी तेलगुदेशम को पुन: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल करने की फिराक में है, जो आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दिला पाने तथा तीन तलाक के मुद्दे पर विपक्ष के साथ जाने के कारण 2018 में राजग से अलग हो गई थी। 
भाजपा जहां उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर को अपने कुनबे में शामिल कर पूर्वांचल में अपनी स्थिति मज़बूत बनाने की फिराक में है, वहीं बिहार में विभाजित लोक जनशक्ति पार्टी यानी राम विलास पासवान के भाई व केंद्रीय मंत्री परशुराम नाथ पारस व पासवान के पुत्र चिराग पासवान में सुलह सफाई कराकर समग्र लोजपा को अपने पाले में लेने की कोशिश में है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा तथा मुकेश सहनी जैसे बिहार के प्रभावशाली नेताओं के भी उनकी पार्टियों के साथ राजग में शामिल होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इसी तरह कर्नाटक में भाजपा का प्रयास है कि किसी तरह जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के साथ भी उसकी बात बन जाये ताकि कर्नाटक की विधानसभा में हुई ज़बरदस्त हार के बाद राज्य की लोकसभा की 28 सीटों पर जेडीएस के साथ चुनाव लड़कर कुछ सीटें जीती जा सकें।  
भाजपा को अपनी ‘कुनबा विस्तार योजना’ दरअसल तब शुरू करनी पड़ी है जबकि उसे हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक जैसे राज्यों में सत्ता गंवानी पड़ी। बंगाल में भी उसे मुंह की खानी पड़ी यानी भाजपा का ‘विश्व विजेता’ बनने का नशा दरअसल अब उतर चुका है और उसे यह एहसास हो चुका है कि उसके लिये क्षेत्रीय दलों की बैसाखी का सहारा लिये बिना 2024 में सत्ता वापसी की राह आसान नहीं है। भाजपा द्वारा धर्म-सम्प्रदाय व जातिवाद के तमाम हथकंडे अपनाने के बावजूद कर्नाटक में मिली ज़बरदस्त हार भी उसे यह सोचने के लिये मजबूर कर रही है कि कहीं ऐसा न हो कि कर्नाटक के चुनाव परिणाम की पुनरावृति लोकसभा 2024 में भी हो जाए। 
उससे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा कन्याकुमारी से कश्मीर तक की गयी सफल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने भी भाजपा नेताओं के कांग्रेस मुक्त भारत के सपनों में पलीता लगा दिया है और कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव काफी मज़बूती से लड़ने जा रही है। इसके अलावा गत 23 जून को पटना में देश के प्रमुख 15 विपक्षी दलों के प्रमुखों का इकठ्ठा होना जैसी परिस्थितियों ने भी भाजपा को अपनी ‘विश्व विजेता’ बने रहने की गलत फहमी दूर कर कमर कसने के लिये मजबूर कर दिया है। भाजपा अपनी इस रणनीति के तहत विपक्षी दलों में फूट डालने से लेकर दूसरे दलों के नये बागियों को मंत्रिमंडल में जगह भी दे सकती है।
राजग का विस्तार हो या अपनी ही पार्टी (भाजपा) में दूसरे दलों के नेताओं को शामिल कर उन्हें कमज़ोर व भाजपा को मज़बूत करना, इस नीति पर भी पार्टी लगातार काम कर रही है। इसी कोशिश का परिणाम मध्य प्रदेश में देखा जा चुका है जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके साथी विधायकों के साथ कांग्रेस से भाजपा में शामिल कराया गया और मध्य प्रदेश विधानसभा के जनमत को ठेंगा दिखाते हुये राज्य की निर्वाचित कमलनाथ सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनाई गयी। पिछले दिनों पटना में विपक्षी दलों की एकता की आहट से घबराई भाजपा ने महाराष्ट्र में भी अपनी विभाजनकारी नीति चलाते हुए शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दो फाड़ करा दिया। अजित पवार को महाराष्ट्र का उप-मुख्यमंत्री व शरद पवार की राकांपा छोड़ने वाले उनके साथी विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिला दी गई। हालांकि इनमें अजित पवार सहित कई राकांपा नेताओं के विरुद्ध भ्रष्टाचार संबंधी मामले चल रहे हैं, परन्तु 2024 की ‘कुनबा विस्तार योजना’ को अधिक महत्वपूर्ण समझते हुये भ्रष्टाचारियों को भी गले लगाने से परहेज़ नहीं किया जा रहा। 
दरअसल भाजपा कर्नाटक के उस वोटिंग पैटर्न से चिंतित है जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि यदि देश के मतदाताओं ने कहीं कर्नाटक की ही तज़र् पर मतदान कर दिया यानी अल्पसंख्यक व दलित मतदाता विपक्ष विशेषकर कांग्रेस के पक्ष में चले गये और आम मतदाता धर्म के बजाये महंगाई व बेरोज़गारी के नाम पर वोट देने लगा तब स्वयं को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली भाजपा का क्या होगा? 
निश्चित रूप से कांग्रेस भी न सिर्फ स्वर्ण, बल्कि अपने पारम्परिक ओबीसी, दलित और मुस्लिम मतदाताओं को भी अपने साथ पुन: जोड़ने का पूरा प्रयास कर रही है। भाजपा भी पसमांदा मुसलमानों के बहाने अल्पसंख्यकों के एक बड़े वर्ग को लुभाने की रणनीति बना रही है यानी भाजपा इन दिनों युद्धस्तर पर एक साथ कई मिशन पर काम कर रही है। इसमें अपनी पार्टी में दूसरे दलों के लोगों को शामिल कर पार्टी मज़बूत करना, विपक्षी दलों में तोड़-फोड़ को हवा देना, विपक्षी नेताओं को ईडी व सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का भय दिखाकर उन्हें अपने साथ जोड़ना तथा राजग से अलग हुए दलों को पुन: राजग में शामिल करना और संभव हो तो नये दलों को भी राजग में शामिल करना जैसी रणनीतियां शामिल हैं। 

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