भारत में कृत्रिम बौद्धिकता, सीमा और सम्भावना
भारत में जहां बेरोज़गारी पहले से ही विकट समस्या बनी हुई है। कृत्रिम बौद्धिकता (ए.आई.) से हम नौकरियां छिन जाने के डर से ज्यादा कुछ सोच नहीं पा रहे। तकनीक के माहिर लोग इसे भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनों मान रहे हैं। कुछ घरों में अब एलेक्सा की सहायता से मन चाहे गीत, पंखा चालू करवाना या सोफे पर बैठ-बैठे आदेश देकर बंद करवाना आम होता चला गया है। तकनीक के माहिर अविजित घोष ने एक शाम एलेक्सा (वॉयस असिस्टेंट) से कहा कि उन्हें श्रेया घोषाल की आवाज़ में धूम तारा गाना सुनना है। वह यह अनुरोध अंग्रेज़ी भाषा में प्रकट करते हैं, लेकिन वह बंगाल से हैं, उनके बंगाली लहज़े से एलेक्सा कन्फ्यूज़ सी हो गई और बार-बार चेष्टा करने पर भी गीत प्ले नहीं हो सका, लेकिन जब उनके साथी ने अमरीकी लहज़े में अशुद्ध-शुद्ध उच्चारण के साथ वही गाना प्ले करने को कहा तो एलेक्सा को एकदम से समझ में आ गया। इससे उन्हें लगा कि भारतीय इस्तेमाल करने वाले लोगों के साथ ए.आई. सिस्टम (कृत्रिम बौद्धिकता) में कहीं कुछ गड़बड़ है। ए.आई. अब क्रांतिकारी बदलाव के दौर में है, उसकी कुछ कमियों के बारे में सोचने वाले लोगों की कमी नहीं है।
क्रांतिकारी इसलिए कहा कि थोड़े ही समय में इसके द्वारा क्षितिज छूने की तमन्ना पूरी की जा सकती है। यह कविता, कहानी लिख सकता है, पत्र व्यवहार कर सकता है, पेंटिंग बना सकता है। दूरदर्शन पर मौसम का हाल बता सकता है। अच्छी फोटोग्राफी कर सकता है, ऑप्रेशन थिएटर में डाक्टर की सहायता कर सकता है। युद्ध में इसकी भूमिका सहायक हो सकती है। अब तो यह कहा जा रहा है कि वह क्या है जो यह नहीं कर सकता? प्राइवेट कम्पनियां इसे खरीदकर अपने दो-चार कर्मियों को अभी अलविदा कह सकती हैं। केवल सृजनात्मक कार्य करने में इसकी क्षमता उतनी नहीं रहती क्योंकि यह कार्य मानवीय प्रतिभा के अधीन है। आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस (कृत्रिम बौद्धिकता) एक ऐसी टैक्नोलॉजी है, जिसमें मशीन डेटा से सीखती और फैसला लेती है। हालांकि कई बार ए.आई. सिस्टम पक्षपात पूर्ण निर्णय लेते देखे गये हैं और अपने ही पूर्वाग्रह से समस्याएं खड़ी कर सकते हैं। वहीं, ए.आई. एथिक्स का उद्देश्य निष्पक्ष, सुरक्षित लोगों के अधिकारों को इज्जत देने वाली टैक्नोलॉजी का निर्माण है, परन्तु जब सभी के लिए बराबर जैसा कार्य नहीं करती तो समस्याएं होंगी ही। मसलन कभी अशिक्षित लोगों या दिहाड़ी मजदूरों को चित्रित करने का काम हो। ए.आई. ऐसे समूह को बहुत सांवला पेश कर रही है। सूत्रों से पता चलता है कि चैट जी.पी.टी. जैसी कुछेक कम्पनियां अनेक विवादों के चलते भारत में ए.आई. टैक्नालोजी अपनाने से हिचक रही हैं। यह भी पता चला है कि आई.बी.एम. की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार लगभग साठ प्रतिशत भारतीय कम्पनियों ने पहले ही ए.आई. को तैनात कर दिया है। भारत को अगर पश्चिमी मॉडल की जटिल समस्याओं से बचना है। इस तकनीक को अपने ढंग से विकसित करना होगा। भारतीय तकनीक के विशेषज्ञों के पास इसकी पूरी क्षमता है। वे तमाम चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। इससे वे अपने सांस्कृतिक ताने-बाने को सुरक्षित भी रख सकते हैं। उभरती हुई अर्थ-व्यवस्था में इसकी मांग ज़रूर रहेगी। बड़ी समस्या जो सामने आ रही है, वह है लोगों के जॉब खोने का डर। भारत में बेरोज़गारी पहले ही डराने वाली है। हमें कोई बीच का रास्ता अपनाना होगा।