देश की बेटियों को शाबाश !

पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की दसवीं की परीक्षा के घोषित हुए परिणामों ने जहां एक ओर लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती सरदारी पर पुष्टि की मुहर लगाई है, वहीं पिछले कुछ दिनों में घोषित अनेक परीक्षा परिणामों और प्रतियोगी परीक्षा परिणामों में अधिकतर अग्रणी स्थानों पर समाज की बेटियों का कब्ज़ा होने से देश और समाज में लड़कियों के प्रति लोगों के नज़रिये में भी काफी हद तक परिवर्तन होने की आहट सुनाई दे सकती है। ताज़ा घोषित पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के दसवीं के परीक्षा परिणामों में एक विशेष बात यह भी रही है कि पहले सभी दस स्थानों पर लड़कियों ने ही कब्ज़ा किया है। यहां तक कि कुल पास प्रतिशतता में भी लड़कियां लड़कों से आगे रही हैं। पहले स्थान पर रहने वाली छात्रा फरीदकोट के एक गांव की गगनदीप कौर है जिसने कुल 650 अंकों में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त कर एक रिकार्ड कायम किया है। इसी प्रकार दूसरा स्थान प्राप्त करने वाली छात्रा भी इसी स्कूल से है, और उसने 650 में से 648 अंक हासिल किये हैं। तीसरे स्थान पर रही छात्रा हरमनदीप कौर को 99.38  की प्रतिशतता के आधार पर 646 अंक मिले तथा वह मानसा के एक सरकारी स्कूल में पढ़ती है। इससे एक और जो बात सिद्ध होती है, वह यह है कि उल्लेखनीय अंकों के साथ उत्तीर्ण हुई ये छात्राएं अधिकतर ग्रामीण मुआशिरे से संबंध रखने वाली और मध्यमवर्गीय परिवारों की सन्तान हैं। उन्होंने अपनी सम्पूर्ण शिक्षा साधारण स्कूलों से ही प्राप्त की है। इससे यह भी पता चलता है कि स्व-अनुशासन से पढ़ाई किये जाने से विद्यार्थी किसी भी जगह से और किसी भी श्रेणी में अच्छे अंक और अच्छा स्थान प्राप्त कर सकते हैं।
परीक्षा परिणामों में अधिकतर लड़कियों के अग्रणी रहने की यह गाथा किसी एक परीक्षा पर ही केन्द्रित नहीं है। अभी पिछले दिनों इसी स्कूल बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में भी लड़कियां ही अधिकतर उच्च स्थानों पर कामयाब हुईं हैं। इससे भी पूर्व केन्द्रीय स्कूल शिक्षा बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं के परिणाम भी समाज की बेटियों के नाम का ध्वजारोहण करते रहे। यहां तक कि देश की सर्वोच्च एवं सर्वाधिक प्रतिष्ठाजनक और लोकप्रिय प्रतियोगी परीक्षा यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन यानि यू.पी.एस.सी. के परिणाम का पलड़ा भी देश की बेटियों की ओर ही झुका हुआ दिखाई दिया। इस प्रतियोगी परीक्षा के पहले तीन स्थान लड़कियों ने ही हासिल किये जिनमें पहले स्थान पर ग्रेटर नोएडा की दिल्ली विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने वाली इशिता किशोर विराजमान हुई। दूसरे स्थान पर काबिज हुई गरिमा लोहिया बिहार के एक पिछड़े क्षेत्र बक्सर की रहने वाली है। इसी परीक्षा का तीसरा और चौथा स्थान भी हैदराबाद की उमा हराथी और नोएडा की ही स्मृति मिश्रा ने प्राप्त किया। पांचवां स्थान हासिल करने वाला युवक मयूर हज़ारिका भी सुदूर उत्तर-पूर्वी पर्वतीय प्रांत असम के तेज़पुर का रहने वाला है। इस प्रतियोगी परीक्षा परिणामों का अध्ययन करने से भी यह बात उभर कर सामने आती है कि अधिकतर विद्यार्थियों ने यह सम्पूर्ण ज्ञान स्व-अनुशासन के अन्तर्गत रह कर की गई पढ़ाई से ही अर्जित किया है। इस प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण रहे अधिकतर छात्र-छात्राओं ने स्वीकार किया है कि उन्होंने कहीं से कोई विशेष कोचिंग अथवा प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया, अपितु सामान्य तरीके से घर में रह कर ही पढ़ाई की थी।
इस सम्पूर्ण परिदृश्य में एक विशेष उल्लेखनीय पक्ष यह भी रहा है कि यह उपलब्धि बेटियों के नाम कोई पहली बार अथवा अकस्मात नहीं दर्ज हुई। यह सिलसिला विगत कई वर्षों से चला आ रहा है। वर्ष 2021 और 2022 में भी इस प्रतियोगी परीक्षा के परिणामों में युवतियों का वर्चस्व रहा था। इसी प्रकार 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं में भी लड़कियां ही शिखर स्थानों की ओर अग्रसर होती आई हैं। नि:संदेह यह एक ऐसे देश और समाज के लिए एक उल्लेखनीय पक्ष हो सकता है जहां पुरुषवादी सोच समाज के सभी वर्गों पर तारी रहती है, और कि जहां बेटियों को कोख में ही मार देने की प्रथा आज भी मौजूद है। वैसे भी माना जाता है कि एक महिला को शिक्षित किया जाना पूरे समाज को शिक्षा देने जैसा होता है। लड़कियों की इस श्रेष्ठता से एक और बात यह लक्षित होती है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियां अधिक प्रतिबद्ध, परिश्रमी और उद्यमशील होती हैं। अग्रणी आने वाली लड़कियों ने यह स्वीकार भी किया है कि वे जब पढ़ाई करती थीं, तो पूरी तरह स्व-केन्द्रित होकर। वैसे इस स्थिति का एक दूसरा पक्ष यह भी है कि अधिकाधिक अंकों को हासिल करने की यह दौड़ विद्यार्थियों में तनाव बढ़ाने का कारण भी बन सकती है। हम समझते हैं कि नि:सन्देह देश और समाज में जिस प्रकार लड़कियां अपना वर्चस्व स्थापित करती जा रही हैं, उससे यह भी प्रकट होता है कि देश और समाज, और प्रशासन के सभी उच्च पद एवं केन्द्र लड़कियों और महिलाओं के हिस्से में ही आते जा रहे हैं। तथापि, देश और समाज की ओर से हम अपनी इन बेटियों को शाबाश देते हुए उनकी उपलब्धियों को खुश-आमदीद कहते हैं।