देश की मिट्टी 

प्राण-दंड का हुक्म पाये हुए कैदी के रूप में सुकरात जब कारावास में थे, तब उनके परम शिष्य क्रीटो ने उनसे कहा - ‘देर न कीजिए और चुपचाप जेल से भाग चलिये। बाहर सब प्रबंध हो चुका है। किसी को पता भी नहीं चलेगा ! किसी दूसरे देश में चले जाइये। मेरी जीवन भर की कमाई आपको भेंट है।’ सुकरात ने गंभीरतापूर्वक उत्तर दिया - ‘मैं ऐसे अनुचित प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकता । जिस देश की मिट्टी में पैदा हुआ , जहां मेरे माता-पिता रहे , जहां की हवा में सांस ली और जहां का पानी पी मैं पला हूं , उस देश के नियमों के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर सकता।’

—पुष्पेश कुमार पुष्प