यहां प्रत्यक्ष बहती है सरस्वती!

यूं तो कहा जाता है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है। यहां सरस्वती अप्रत्यक्ष और गंगा यमुना प्रत्यक्ष बहती हैं परन्तु माउन्ट आबू की ऊंची पहाड़ियाें के बीच से होकर एक जल स्रोत बहता है जो ऊंची पहाड़ियों से 700 सीढ़ियां नीचे उतर कर एक घाटी में स्थित गौमुख से होकर कुण्ड में गिरता है। इस जल स्रोत को सरस्वती गंगा का प्रवाह कहा गया है।  निरंतर बहने वाले इस जल स्रोत तक पहुंचने के लिए हमने ज्ञान सरोवर से एक टैक्सी किराये पर ली और गौमुख की ओर जाने वाले उस उच्च शिखर पर स्थित मार्ग तक हम कार से गए। इसके बाद ऊंची पहाड़ी से नीचे 700 सीढ़ियां उतरकर  गौमुख स्थल पर पहुंचते हैं। माउण्ट आबू बस स्टैण्ड से 5 किमी दूर स्थित गौमुख पहुंचने के लिए पहाड़ी सीढ़ियां घने जंगलों से होकर गुजरती है जहां करौन्दा, केतकी, आम और अन्य प्रजाति के वृक्षों की भरमार है। पहाड़ से नीचे सीढ़ियों से उतरते हुए शरीर का संतुलन बनाना जरूरी होता है लेकिन फिर भी गौमुख जाते हुए उतनी मेहनत नहीं लगती जितनी मशक्कत वापस लौटने में करनी पड़ती है। 700 सीढ़ियां चढ़ना बेहद कठिन लगता है जिससे पसीना-पसीना हो जाते हैं लेकिन गौमुख की शान्ति, गौमुख का पवित्र जल और गौमुख के  पास बने सरस्वती, सूर्य नारायण और भगवान शिव के मंदिरों को एक ही कक्ष में देखकर सबका मन आस्थामय हो जाता है। यही से थोड़ा नीचे उतरकर वशिष्ठ आश्रम है जहां से वशिष्ठ बचनामृत समाचार पत्र प्रकाशित होता है। आबू पर्वत की इस वियाबान घाटी में किसी समाचार पत्र का प्रकाशित होना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। जिस घाटी में स्कूल, अस्पताल, डाकघर, यातायात जैसी कोई सुविधा न हो, जहां भवन निर्माण के लिए ईंट, सीमेंट, लोहा, बजरी पहाड़ से 700 सीढ़ियां नीचे श्रमिक के सिर पर रखकर पहुंचाया जाता हो और इसी माध्यम से जहां खादय सामग्री पहुंचती हो, वहां समाचार पत्र का कार्यालय देखकर हमें जो खुशी हुई, उसे शब्दाें में बयान नहीं किया जा सकता।  कहा जाता है कि वशिष्ठ ऋ षि के तपस्या स्थल पर बने अग्नि कुंड से परमार, परिहार, सोलंकी और चौहान वंशों की उत्पत्ति हुई थी। परमार वंश में धूमराज और धंधूक राजाओं ने आबू पर्वत के प्रवेश  द्वार स्थित चन्द्रावती नगरी पर राज्य किया, जिसे अब तलहटी के नाम से जाना जाता है और जहां अब बह्मकुमारीज़ का शान्ति वन एवं मनमोहिनी जैसे भव्य परिसर हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम और लक्ष्मण के गुरु वशिष्ठ का यहां प्राचीन मंदिर है जिसमें राम और लक्ष्मण की भी मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। साथ ही गुरु वशिष्ठ की पत्नी अरुंधती व कपिल मुनि की प्रतिमाएं भी यहां विराजमान हैं।  मंदिर के बाहर नंदिनी कामधेनु गाय की प्रतिमा भी उसकी बछिया के साथ संगमरमर से बनी हुई है। मंदिर के परिसर में बाहर अवतार शेषनाग पर सोये नारायण, विष्णु, सूर्य, लक्ष्मी समेत अन्य कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं यहां आस्था का केन्द्र है। इस वशिष्ठ मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा ने सन 1394 में कराया था जिसका विवरण पाली भाषा में एक शिलालेख में यहां अंकित है। मंदिर के जीर्णोद्वार के समय का साक्षी स्वर्ण चम्बा वृक्ष जहां दर्शनीय है, वहीं सन 1973 में हुए भूस्खलन से मंदिर क्षतिग्रस्त हुआ और कई दुर्लभ मूर्तियां और भोजपत्र क्षतिग्रस्त हो गए जिनके अवशेष अभी भी यहां सहेज कर रखे गए हैं। मजेदार बात यह है कि यह वशिष्ठ आश्रम यूं तो राजस्थान राज्य सीमा में है लेकिन बी एस एन एल नेटवर्क यहां गुजरात का काम करता है। इस क्षेत्र में मीठा करोन्दा जामुन जैसा दिखाई देता है। क्षेत्र में आसपास कोई भी स्कूल न होने के कारण कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जा पाता और बच्चों का अधिकांश समय पहाड़ी जंगलों में बीतता है और वे पैसा कमाने के लिए पर्यटकों को करोन्दा जामुन की तरह ही कागज के लिफाफे में भरकर बेचते हैं। जंगली जानवरों से बेखौफ ये बच्चे बंदर की तरह सीधी पहाड़ियों पर सरपट चढ़ जाते हैं जबकि आम जन को सीढ़ियां चढ़ने में ही पसीने आ जाते हैं। (उर्वशी)

—डा. श्रीगोपाल नारसन