आतंकवाद के जुनून और जेहाद के चक्र-व्यूह में पाकिस्तान
गत दिनों अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दो दिवसीय भारत यात्रा हेतु अहमदाबाद, आगरा और दिल्ली में आए थे। अहमदाबाद में भाषण देते हुए उन्होंने कहा इस्लामिक आतंकवाद से जंग में भारत और अमरीका एक साथ खड़े हैं। ट्रम्प ने पाकिस्तान को आतंकवाद को समाप्त करने की सलाह भी दी। यही बात ट्रम्प ने दिल्ली में प्रैस वार्ता में भी कही ताकि भारत के साथ गुफ्तगू जारी हो सके। यही बात सन् 2014 से नरेन्द्र मोदी भी पाकिस्तान को कह रहे हैं। भारत की विदेश नीति और आरम्भिक समय से यही कह रही है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते, परन्तु ऐसा लगता है कि पाकिस्तान शासक परवेज़ मुशर्रफ हो या नवाज़ शरीफ अथवा इमरान खान, आतंकवाद से छुटकारा पाना इनके बस की बात नहीं लगती। आतंकवाद का आगाज़ ज़िया-उल-हक ने किया था। यह बात ज़िया-उल-हक ने खुल कर कही थी कि सीधे युद्ध में भारत का सामना पाकिस्तान नहीं कर सकता इसलिए छदम युद्ध का सहारा लेना है। एक कुत्सित मकसद की खातिर एक जुनून के साथ कंधे से कंधा मिला कर हाफिज़ सैयद, मसूद अज़हर, सलाहुद्दीन और लखवी इत्यादि ऐसे दर्जन भर से ज्यादा आतंकवाद के जुनूनी सरगना हैं। एक बार इमरान खान ने स्वयं माना था कि पाकिस्तान में 40 दहशतगर्दी के संगठन है, जिनके 40 हज़ार से अधिक दहशत गर्द हैं। अपराध को संरक्षण देता है आई.एस.आई. जो फौजी लीडरशिप के अधीन है। इन दहशतगर्दों में आपसी मेल है भी नहीं क्योंकि आई.एस.आई. ने बांटो और दहशतगर्दी की लगाम अपने हाथ में रखो की नीति अपनाई है। हाफिज़ सईद पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में प्रशिक्षण कैम्प चलाता है। मसूद अज़हर बहाबलपुर में और सलाहूद्दीन भारतीय कश्मीर में दहशतगर्दों को हथियार, पैसा आदि पहुंचाता है और यह भाड़े के दहशत गर्द जेहाद का नाम लेकर मुस्लिम युवा वर्ग को भरमाते रहते हैं। इन दहशतगर्दों के आपसी संबंध नामात्र भी नहीं फिर भी शिया मस्जिदों पर हमला और अन्य अल्प संख्यकों को मौत के घाट उतारना सभी दहशतगर्दों का एक तरह का जुनून है। भारतीय खूफिया एजेंसियों को पक्की जानकारी है कि हाफिज़ सईद को जेल में 11 वर्ष के लिए डालने का नाटक मात्र ही है। गुप्तचर विभाग यह भी जानते हैं कि आतंकवादियों को हवाला से भारत के दुश्मन कुछ लोगों द्वारा धन भी प्राप्त होता रहता है और इसके साथ इनमें से कुछ दहशतगर्द संगठनों का अलकायदा और तालिबान से संबंध भी जग-ज़ाहिर हैं। ऐसे में अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का मश्वरा पाकिस्तान भला माने भी कैसे? यह तो उस व्यक्ति जैसी हालत में फंसा है जो अपना पांव स्वयं एक खूंटे से बांध कर चिल्ला रहा हो कि मुझे छुड़ाया जाए। इमरान खान और पाकिस्तानी सेना के कमांडर इन चीफ बाजवा भी ऐसी हालत में फंसे हैं कि जो छुड़ाए न बने और निभाए न बने। इस्लाम धर्म में जेहाद को पवित्र संघर्ष माना गया। अब कोई पूछे कि यह दहशतगर्द क्या नहीं जानते कि अपराध की सीमा कहां खत्म होती है और जेहाद कहां से शुरू होता है। इन दहशतगर्दों को भारत के खिलाफ उतरने के लिए और खून-खराबा करने के लिए एक जैसा बना दिया तभी तो जब कुछ दहशतगर्द भारतीय सेना के हाथों मारे जाते हैं तो उनमें से कुछ जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के लोग एक साथ नज़र आते हैं। इन दहशतगर्दों की कोई विचार धारा नहीं, कोई सोच, कोई तर्क नहीं, सिर्फ कानून जैसे कोई आदमखोर भेड़िया जंगल में आदम बू आदम बू करता भटकता हो। हम यहां ट्रम्प से इतना ही कहेंगे कि जब तक पाकिस्तान आर्थिक तौर पर पर दिवालिया नहीं होता और पाकिस्तान सेना की शासन करने की भूख नहीं मिटती तब तक दहशतगर्दों के बारे में आप कुछ भी कहें, पाकिस्तान पर किसी बात का कोई असर नहीं होगा। यह सत्य है कि पाकिस्तान का आधार भारत से घृणा पर टिका रहा। भारत से घृणा छोड़ने पर कुछ पाकिस्तानी कट्टरपंथी यह समझते हैं कि पाकिस्तान का वजूद ही खत्म हो जाएगा इसलिए भारत से दुश्मनी उनकी विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण अंग बन चुकी है। बम और बारूद जो भी पाकिस्तान में निर्मित होता है, उसे वे भारत के विरुद्ध प्रयोग करते हैं। एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में अब दहशतगर्दी में उतरने वाले बहुत कम नौजवान रह गए हैं इसलिए अब लड़कपन में खेलने खाने की हालत के अव्यसक लोगों को दहशतगर्दी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। विधि की विडंबना है कि जो देश नौजवानों को रोज़गार देता, वह नौजवानों को दहशतगर्दी में उतार कर मौत के हवाले करवा रहा है। अब तक दहशतगर्दी में फंसे एक लाख के करीब नौजवान मौत के घाट उतर चुके हैं। ट्रम्प साहिब सोते को तो जगाया जा सकता है और जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे कौन जगाए। इमरान खान और उसकी कैबिनेट के कई वज़ीर जब भी मुंह खोलते हैं तो भारत से जंग और अपने यहां के एटम बमों की कहानी ज़रूर सुनाते हैं। ऐसे में पाकिस्तान आतंकवाद के जुनून और जेहाद से छुटकारा कैसे पा सकता है?जब नवाज़ शरीफ पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म थे, तब प्रोटोकाल तोड़ कर काबुल से आते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाहौर में उनसे मिलने के लिए पहुंच गए जिस पर देश के विपक्ष ने तीव्र प्रतिक्रिया दी, परन्तु वे लोग जो यह कहते हैं कि पाकिस्तान से बातचीत करनी चाहिए वे अवश्य खुश हुए होंगे। भारतीय कश्मीर में धारा 370 के हटने से पूर्व कई ऐसे संगठन थे जो ‘हमारी जान-पाकिस्तान’ के नारे लगाया करते थे और जुम्मे की नवाज़ के बाद पाकिस्तान के झंडे भी लहराते थे। क्या अमरीकी शासकों को यह याद नहीं? भारत चाहता है कि पाकिस्तान अपने बुने हुए मकड़ जाल से बाहर निकले और आतंकवाद को नकेल डाले, जिससे पाकिस्तान को भारत की तरफ से हर सम्भव मदद प्राप्त हो सके। उड़ी और पुलवामा, पठानकोट हवाई अड्डा और जम्मू बस स्टैंड जैसी घटनाएं भारत के लोगों को पाकिस्तान के प्रति क्रोधित ही करती हैं। भारतीय भावनाओं को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तानी शासकों को सीमाओं से छेड़छाड़ बंद करनी होगी और दहशतगर्दी के प्रशिक्षण शिविरों से तौबा करनी होगी वर्ना अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का मश्वरा बहते पानी पर लिखा गया दोस्ती का शब्द ही बन कर रह जाएगा।