राष्ट्र-व्यापी समस्या बन गया है देश में धर्मांतरण

आजकल पंजाब के साथ ही पूरे देश में हिंदुओं के धर्मांतरण की बहुत चर्चा है।
मुस्लिम और ईसाई समाज लालच, भय या अन्य साधनों से हिंदुओं विशेषकर
आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों को सहज ही धर्म परिवर्तन के लिए तैयार कर लेता
है। पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में गरीब एवं पिछड़े वर्ग के लोग सहज ही उनका
शिकार हो जाते हैं जो लालच या झांसा देकर धर्म परिवर्तन करने के लिए तैयार
कर लेते हैं। पंजाब में वैसे तो पिछले दो दशक से मतांतरण हो रहा है। इसके लिए
कभी-कभी श्री अकाल तख्त साहिब से एवं सिख धर्म गुरुओं द्वारा चिंता और चर्चा
का स्वर उठता है। बहुत देर के बाद ही सही, अब स्थिति गंभीर होने पर सिखों की
सर्वोच्च संस्था श्री अकाल तख्त साहिब ने सीधे तौर पर इस मामले में दखल
दिया। पिछले दिनों दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा धर्म बदल चुके 12 सिख
परिवारों को ईसाई धर्म से वापस लाने का काम किया गया। इन परिवारों के
सदस्यों ने बताया कि किसी को उसके पति के स्वस्थ होने की बात कही गई,
किसी को गरीबी से मुक्ति दिलवाने का विश्वास दिलाया गया और उन्होंने ईसाई
धर्म स्वीकार किया। 
सभी जानते हैं कि भारत के कानून में डर, लालच या भुलावा देकर धर्म परिवर्तन
करवाना बहुत बड़ा अपराध है, परन्तु जिस समाज के धार्मिक मुखी और सरकारी
तंत्र सोया रहता है या निष्क्रिय रहता है, वहां कानून की नाक के नीचे सभी
गैर-कानूनी काम हो जाते हैं और कानून तब हरकत में आता है जब समस्या बहुत
ज्यादा गंभीर हो जाती है। पंजाब प्रांत की सीमाएं पाकिस्तान के साथ सटी हैं और
कौन नहीं जानता कि धर्म परिवर्तन के साथ ही आस्था में परिवर्तन का काम भी
स्वयमेव प्रारंभ हो जाता है। कोई ईसाई या मुसलमान बने स्वेच्छा से तो दूसरों को
विरोध करने का कोई अधिकार कानूनन नहीं है, परन्तु जब धर्म बदलते ही वे देश
के प्रति वफादारी बदलने लगते हैं तो यह राष्ट्रीय चिंता का विषय हो जाता है।
मुसलमानों में तो लव जेहाद के नाम पर भी हिंदू लड़कियों को उलझाने, फंसाने का
काम कुछ धर्म गुरुओं के संरक्षण में हो रहा है। इसे रोकना ही होगा।
जिस समय भारत का विभाजन हुआ उस समय भारत में मुसलमानों की संख्या
साढ़े तीन करोड़ थी जो अब तक 17 करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है। इंडोनेशिया
के बाद भारत सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला देश है। इसी प्रकार ईसाइयों की
संख्या भी 1991 के मुकाबले अस्सी लाख से बढ़कर दो करोड़ अस्सी लाख हो गई
है। इस समय मुसलमान भारत की कुल आबादी का साढ़े 14 प्रतिशत भाग हैं। यह
सर्वविदित है कि मध्यकाल में भी हिंदुओं पर बहुत अत्याचार विदेशी मुस्लिम
आक्रांताओं ने किए। कौन नहीं जानता कि तैमूर लंग, चंगेज़ खान ने सरेआम कत्ल
किए और जो लोग अपना धर्म छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, उन्हें मृत्यु दी गई।
औरंगज़ेब भी अत्याचारों में पीछे नहीं रहा। जो मुसलमान नहीं, उन पर जज़िया
लगाना और अगर हिंदू समाज जज़िया के विरुद्ध गुहार लेकर जाए तो उन्हें हाथियों
के पैरों तले कुचलवा देना इतिहास के काले पन्नों में लिखा है।
 आज न तो हम औरंगज़ेब के युग में हैं, न ही देश की सीमाएं पार करके किसी
तैमूर या चंगेज़ की अपने देश में आने की हिम्मत है। सीमाएं सुरक्षित हैं। सीमा
रक्षक प्राण हथेली पर लिए भारत मां की रक्षा के लिए हर पल तत्पर हैं। ऐसे में
यह धर्मांतरण का चक्त्र विदेशी धन और विदेशी एजेंसियों के सहयोग से अपने देश
में चल रहा है।
आखिर क्या कारण है कि पाकिस्तान और बंगलादेश में विभाजन के 75 वर्ष बाद
हिंदुओं की संख्या बहुत थोड़ी रह गई। मंदिर भी तोड़े गये, पाकिस्तान में हिंदू-सिख
बेटियों का अपहरण हर रोज़ की बात हो गई। हिंदू-सिख युवकों की हत्या या
अपहरण कर लेना पाकिस्तान के कट्टरपंथियों के लिए आसान काम है। विभाजन के
समय जो हिंदू-सिख परिवार भारत पहुंचने में सफल रहे  तथा उनके जो रिश्तेदार
पाकिस्तान में रह गए, उनमें से शायद ही कोई आज हिंदू-सिख मिलेगा। सबको
जबरन मुसलमान बना लिया गया और जीवित रहने के लिए धर्म परिवर्तन उनकी
मजबूरी थी, परन्तु आज हिंदुस्तान में धर्म परिवर्तन कोई मजबूरी नहीं। ऐसा कोई
खतरा नहीं कि ईसाई या मुसलमान नहीं बनेंगे तो मार दिए जाएंगे। हमारे लोगों
की गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा और हमारे धर्म गुरुओं का आत्मकेंद्रित होना ही धर्म
परिवर्तन का कारण है। हज़ारों ही नहीं, लाखों धर्म गुरु इस देश में हैं। बड़े-बड़े मठ
हैं, मंदिर हैं, विभिन्न सम्प्रदायों के विशालकाय भवन हैं, गुरुद्वारे हैं। जैन-बौद्ध,
नामधारी-निरंकारी अनेक विश्व प्रसिद्ध और सशक्त धार्मिक गुरु और सम्प्रदाय इस
देश में हैं। अगर सभी मिलकर एक एक गांव को भी अपना लें तो धर्म परिवर्तन हो
ही नहीं सकता। किसी की गरीबी या अनपढ़ता का लाभ कोई उसी स्थिति में उठा
सकता है जब उनके घर में उनको संभालने वाला कोई न हो। यह भाषणी या
अखबारी चिंता हमारे समाज की रक्षा नहीं कर सकती। 
देश की लाखों बेटियां वेश्यालयों में हैं। लाखों बच्चे चौक-चैराहों में भिक्षा-वृत्ति या
शोषण का शिकार हो रहे हैं। जिनका अपहरण हो गया उनमें से अधिकतर बच्चे
कभी मिलते ही नहीं। वे मानव तस्करी का शिकार हुए या वासना की मंडी में
धकेल दिए गए, कोई नहीं जानता। आज की आवश्यकता यह है कि धर्मांतरण पर
केवल निष्क्रिय चिंता न की जाए। बड़े-बड़े भाषण न दिए जाएं। धर्मांतरण अगर
रोकना है तो इसका द्विपक्षीय प्रयास किया जाना चाहिए। पहले तो सरकारी तंत्र
पूरी तरह हरकत में रहे और जो लोग लालच, भय या झूठे झांसों में आकर धर्म
बदलते हैं, उनको बचाएं और धर्म परिवर्तन करवाने वालों को दंड दें। जागना होगा
हमारे धर्म गुरुओं को, सुखद मठ, मंदिर, ठंडे, गर्म कमरे छोड़कर उन गांवों में
जाना होगा जहां भूखा पेट है, अनपढ़ता हैं, जो उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए विवश
कर रही है।