महिला आरक्षण : बातें हैं, बातों का क्या !

महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने वाला बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक जिसे वर्तमान सरकार ने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ का नाम दिया है, कई दशकों की प्रतीक्षा के बाद लोकसभा में ऐतिहासिक बहुमत के साथ पारित हो गया। इस विधेयक के समर्थन में 454 मत पड़े जबकि 2 मत इसके विपक्ष में भी पड़े। गोया लगभग पूर्ण बहुमत से इसे संसद ने पारित कर दिया। सदन में महिला आरक्षण विधेयक पारित होते ही सत्ता और विपक्ष दोनों में इसका श्रेय लेने की होड़ मच गयी। कांग्रेस ने इसे अपना बहु-प्रतीक्षित विधेयक बताया जबकि संसद के नये भवन में इस पहले विधेयक को पारित कराकर भारतीय जनता पार्टी इसे चुनाव पूर्व का अपना मास्टर स्ट्रोक बता रही है। इस विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इस विधेयक के पारित होने के बावजूद महिलाओं को आरक्षण का लाभ कब से मिलना शुरू होगा, इसका किसी को ज्ञान नहीं। केवल कयास लगाए जा रहे हैं। किस वर्ग की महिलाओं को मिलेगा, यह भी पता नहीं है और कैसे मिलेगा, यह भी स्पष्ट नहीं। ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के नाम से पारित हुये इस अधिनियम में संविधान के 128 वें संशोधन में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है। हालांकि इसी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव व 2024 में प्रस्तावित लोकसभा के आम चुनाव में महिला आरक्षण लागू होना असंभव है, क्योंकि महिला आरक्षण के ड्ऱाफ्ट के अनुसार इस कानून के बनने के बाद होने वाली पहली जनगणना और फिर सीटों के परिसीमन के बाद ही महिलाओं हेतु आरक्षित सीटों का निर्धारण किया जायेगा। जबकि 2010 में संप्रग के शासनकाल में राज्यसभा में महिला आरक्षण संबंधी जो पिछला विधेयक पारित हुआ था, उसमें परिसीमन की शर्त नहीं थी और भाजपा ने भी उस समय परिसीमन जैसी किसी शर्त के बिना ही उस विधेयक का समर्थन किया था। सवाल यह है कि आज जब भाजपा सरकार महिला आरक्षण को लागू करने के लिए अधिनियम बना रही है तो उसे सबसे पहले परिसीमन से जोड़ने की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है? क्या इसी लिये नए ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ में महिला सीटों के आरक्षण के लिए अनुच्छेद 334-ए जोड़ा गया है जिसमें कहा गया है कि महिला आरक्षण के लिए परिसीमन अनिवार्य होगा? माना जा रहा है कि परिसीमन का म़कसद लोकसभा सीटें बढ़ाना भी हो सकता है। ़गौरतलब है कि 2021 में होने वाली जनगणना भी अभी तक नहीं हुई है। यदि सब कुछ निर्बाध रूप से और बिना किसी टालमटोल के हुआ तो शायद महिला आरक्षण 2026 से लागू हो सके अन्यथा अनिश्चितता की सूरत बनी रहेगी। हालांकि सरकार ने यह ज़रूर बता दिया है कि ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ लागू होने से लोकसभा में महिलाओं की संख्या 82 से बढ़ कर 181 हो जाएगी। यह भी बताया गया है कि 15 वर्ष के लिए आरक्षण का प्रावधान है हालांकि संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा।
बहरहाल महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद अनेक विश्लेषकों व राजनीतिज्ञों की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कांग्रेस चाहती है कि इसे तत्काल लागू किया जाये। इसे लागू करने के लिए जनगणना या परिसीमन की कोई ज़रूरत नहीं है, जबकि कुछ का मत यह भी है कि जब महिलाओं को आधी आबादी कहकर संबोधित किया जाता है तो उनके लिये आरक्षण भी 33 प्रतिशत क्यों, 50 प्रतिशत क्यों नहीं? और यदि वास्तव में सरकार की नीयत महिला आरक्षण अधिनियम को लेकर साफ है तो परिसीमन व जनगणना जैसे बहानों की ज़रूरत क्या? जिस तरह भाजपा द्वारा दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में महिलाओं को इकट्ठा कर बाकायदा जश्न मनाकर प्रधानमंत्री का महिला आरक्षण अधिनियम के लिये पार्टी की महिलाओं द्वारा धन्यवाद किया गया और उन्हें महिलाओं का इस शताब्दी का सबसे बड़ा नायक व इतिहास पुरुष बताने की कोशिश की गयी, उससे कम से कम एक बात तो स्पष्ट है कि बावजूद इसके कि आगामी विधानसभा व लोकसभा किन्हीं भी चुनावों में महिला उम्मीदवारों के लिए इस आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलेगा परन्तु इसके बावजूद यह भी तय है कि महिला आरक्षण का यह मुद्दा निकट भविष्य के सभी चुनावों में मुख्य मुद्दा बनने वाला है। इसे इसलिये ज़रूर सरकार का मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है कि सरकार ने आधी आबादी के प्रति अपनी हमदर्दी का संदेश भी दे दिया और पुरुषों का वर्चस्व भी फिलहाल यथावत बना रहने दिया। तो क्या केवल चुनावी लाभ हासिल करने की ़गरज़ से ही यह सारी ़कवायद की गयी?
जिस तरह संसद के नये भवन में महिला आरक्षण के रूप में पहला विधेयक पेश किया गया और उसे ऐतिहासिक समर्थन के साथ पूर्ण बहुमत से पारित भी करा लिया गया, इससे बेशक यह संकेत तो मिलता है कि सरकार आधी आबादी की हित-चिंतक है, परन्तु इन सवालों से भी यह सरकार कैसे बच सकती है कि जब इसी वर्ष 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन किया गया था, उस समय देश की महिला राष्ट्रपति को इस भवन के उद्घाटन हेतु क्यों आमंत्रित नहीं किया गया था जबकि यह उनका अधिकार भी था, और यदि वह उद्घाटन करतीं, तो राष्ट्रपति के महिला होने के नाते एक अच्छा संदेश भी जाता। 
इस विधेयक पर चर्चा के दौरान कई सांसदों ने मणिपुर में महिलाओं को नग्न घुमाये जाने, महिलाओं के प्रति हो रहे राष्ट्रव्यापी अपराध, देश में बढ़ती जा रही दुष्कर्म की घटनाओं का भी ज़िक्र किया। बहरहाल सत्ता और विपक्ष खासकर भाजपा व कांग्रेस के बीच महिला आरक्षण का श्रेय लेने की बातें तब तक बेमानी और महिलाओं को भ्रमित करने वाली हैं, जब तक यह लागू नहीं हो जाता। इस अधिनियम को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ जैसा लोक लुभावन नाम दिया जाना भी तब तक मीठी बातों जैसा ही है। तब तक महिला आरक्षण की बातें सिर्फ बातें ही हैं, बातों का क्या!
 

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