मिलावट से लगी है ज़िन्दगी दांव पर

आज आम आदमी महंगाई के साथ खाद्य पदार्थो में हो रही मिलावटखोरी से खासा परेशान है। हमारे बीच यह धारणा पुख्ता बनती जा रही है कि बाजार में मिलने वाली हर चीज में कुछ न कुछ मिलावट जरूर है। लोगों की यह चिंता बेबुनियाद नहीं है। आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है। खाने पीने के पदार्थों में मिलावट कोई नयी समस्या नहीं है। मिलावट और खराब उत्पाद बेचे जाने की खबरें आम हो चुकी हैं। साल-दर-साल इसका दायरा व्यापक होता जा रहा है। भारत में त्योहारी सीजन आते ही घर घर में मिठाइयां बनना शुरू हो जाती हैं और बाजारों में मिठाइयों की दुकानें सज्ज जाती है। दीपावली देश का सबसे बड़ा त्योहार है। दीपावली से पूर्व त्योहारों की श्रृंखला भी शुरू हो जाती है। त्योहारी सीजन शुरू होने के साथ ही मिलावटखोर भी सक्त्रिय हो जाते हैं जो सस्ती मिठाइयां तथा मावा बेचकर ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में आमजन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। देश मे शायद ही ऐसी कोई चीज हो जो मिलावट न हो। मिठाइयों मेें इस्तेमाल किये जाने वाला मावा शायद ही कहीं असली मिले। हर साल सरकार भी मिलावट रोकने की खानापूर्ति के लिए तैयार हो जाती है। समाचार पत्रों में मिलावट रोकने के विज्ञापन और समाचार रस्मी तौर पर जारी किये जाते हैं। त्योहार आकर चले जाते हैं और पीछे छोड़ जाते हैं मिलावट का जहर जो अगली दीवाली तक बच्चे से बुजुर्ग तक के स्वास्थ्य को डसता रहता है। अस्पतालों के चक्कर पर चक्कर काटना आदमी की मजबूरी हो जाता है क्योंकि मिलावट का जहर  शरीर पर कहर बन कर टूटता है। अन्ततोगत्वा मनुष्य ऐसी बीमारी के शिकार हो जाते है जहाँ से निकलना उनके लिए काफी दुष्कर होता है। आज स्थिति यह है कि सरकारी तंत्र की लापरवाही और मिलीभगत , संसाधनों के अभाव, केन्द्र-राज्य मेें परस्पर  सहयोग के अभाव, लचर दंड व्यवस्था का खमियाजा उपभोक्ता को चुकाना पड़ रहा है। मिलावटी चीजों के खाने से अगर कोई बीमार पड़ जाए तो बाजार में दवाइयां  भी नकली बिक रही हैं। यानि आपके बचने के सभी रास्ते बंद।
आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है । संपूर्ण देश में मिलावटी खाद्य-पदार्थों की भरमार हो गई है । आजकल नकली दूध, नकली घी, नकली तेल, नकली चायपत्ती आदि सब कुछ धड़ल्ले से बिक रहा है। सच तो यह है कि अधिक मुनाफा कमाने के लालच में नामी कंपनियों से लेकर खोमचे वालों तक ने उपभोक्ताओं के हितों को ताक पर रख दिया है।  अगर कोई इन्हें खाकर बीमार पड़ जाता है तो हालत और भी खराब है, क्योंकि जीवनरक्षक दवाइयाँ भी नकली ही बिक रही हैं ।  खाने के सामान में मिलावट एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। हमारे दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का आजकल शुद्ध और मिलावट रहित मिलना मुश्किल हो गया है। आज समाज में हर तरफ  मिलावट ही मिलावट देखने को मिल रही है। पानी से सोने तक मिलावट के बाजार ने समाज की बुनियाद को हिला कर रख दिया है। पहले दूध में पानी और शुद्ध देशी घी में वनस्पति घी की मिलावट की बात सुनी जाती थी, मगर आज घर-घर में प्रत्येक वस्तु में मिलावट देखने और सुनने को मिल रही है। मिलावट का अर्थ प्राकृतिक तत्वों और पदार्थों में बाहरी, बनावटी या दूसरे प्रकार के मिश्रण से है। जनसामान्य की यह चिंता निराधार नहीं है।  एक सर्वे के अनुसार भारत में खुले में जितनी चीजें बिकती हैं, उनमें करीब 64 प्रतिशत खाने-पीने की चीजों में मिलावट होती है। कई चीजों में तो हानिकारक केमिकल तक मिलाया जाता है। इनमें दूध, खाद्य तेल, दाल और सब्जियां शामिल हैं। इस सर्वे ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भारत में मिल रहे खाद्य पदार्थों में मिलावट बहुत ही साधारण सी बात हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य वस्तुओं की जांच में पाया गया है कि खाने-पीने के 60 से 65 फीसदी खुले  तेल में बड़े पैमाने पर मिलावट होती है। भारत में मिलावट और जमाखोरी रोकने के लिए कानून तो हैं, मगर वे इतने प्रभावशाली नहीं हैं, जो ऐसे लोगों में खौफ  पैदा कर सकें।  सामान्य तौर पर एक परिवार अपनी आमदनी  का लगभग 60 फीसदी भाग खाद्य पदार्थों पर खर्च करता है। खाद्य अपमिश्रण से अंधापन, लकवा तथा ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं। सामान्यत: रोजमर्रा की जिन्दगी में उपभोग के आने वाले खाद्य पदार्थों जैसे दूध, छाछ , शहद, हल्दी, मिर्च, पाउडर, धनिया, घी, खाद्य तेल, चाय-कॉफी, मसाले, मावा , आटा आदि में मिलावट की सम्भावना अधिक होती है। मिलावट एक संगीन अपराध है। मिलावट पर काबू नहीं पाया गया तो यह ऐसा रोग बनता जा रहा है कि समाज को ही निगल जाएगा। मिलावट के आतंक को रोकने के लिए सरकार को जन भागीदारी से सख्त कदम उठाने होंगे।