बिखराव का खमियाज़ा भाजपा व जदयू दोनों को भुगतना पड़ेगा

अंततोगत्वा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग बिखर गया। अपने पिता राम विलास पासवान की मृत्यु को सार्वजनिक करने से पहले लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर दी थी। इस बात को लेकर चर्चाओं का बाज़ार तो गर्म है ही, साथ ही लोगों के बीच कुछ भ्रम की स्थिति भी बनी हुई है। चिराग की घोषणा के तुरंत बाद भाजपा के कई बड़े बिहारी नेताओं ने धड़ाधड़ लोक जनशक्ति पार्टी का दामन थामा। उनमें झारखंड के पूर्व महामंत्री संगठन राजेन्द्र सिंह और पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी भी शामिल हैं। इन दोनों भाजपा नेताओं के अलावा पूरे बिहार में बड़ी संख्या में भाजपा नेता लोजपा में शामिल हो रहे हैं। इन नेताओं का कहना है कि चिराग की ओर से उन्हें टिकट का आश्वासन भी दिया गया है। यही नहीं, चिराग पासवान ने जब अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की, तो इस घोषणा के साथ उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी केवल नितीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल यू के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेगी। भाजपा जहां-जहां से लड़ेगी, वहां वह उसके उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे हालांकि भाजपा ने इस प्रकार का कोई बयान नहीं दिया जिससे यह साबित हो कि लोजपा को उसने उकसाया है लेकिन चिराग के बयान और बड़ी संख्या में भाजपा नेताओं का लोजपा में शामिल होना संदेह को जन्म देता है।इस पूरे प्रकरण का कुल लबोलुआब यह है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बिखराव हो चुका है। जानकारों की सूचना पर भरोसा करें तो इसके कारण जनता दल यूनाइटेड के कई उम्मीदवारों ने भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा क्षेत्र में प्रचार न करने का आरोप लगाकर अपना टिकट व सिंबल पार्टी आलाकमान को वापस कर दिया है। इस मामले को मुख्यमंत्री और जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितीश कुमार ने भी गंभीरता से लिया है। इस पूरे राजनीतिक घटनाक्र म का दबाव नितीश कुमार पर स्पष्ट देखा जा सकता है लेकिन फिलहाल नितीश कुमार कुछ कर नहीं सकते। इधर नितीश के धुर प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की जमानत को लेकर भी कई प्रकार के कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि यह एक कानूनी प्रक्रि या है लेकिन कानूनी प्रक्रि याओं पर राजनीति की प्रतिछाया कोई नई बात नहीं है। यह पूरे देश में होता रहा है। खासकर बिहार में तो इसके कई उदाहरण हैं।फिलहाल राजग गठबंधन में बिखराव का दुष्प्रभाव लोजपा पर बहुत ज्यादा नहीं दिख रहा है। चूंकि लोजपा बड़ी संख्या में अपने उम्मीदवार मैदान में उतार रही है इसलिए उसे फायदा हो सकता है। दूसरी बात यह है कि लोजपा के कई उम्मीदवार खुद की बदौलत भी चुनाव जीतते रहे हैं। इस चुनाव में उन्हें लोजपा का पारम्परिक वोट मिलेगा और वे इसका फायदा उठा सकते हैं लेकिन इस बिखराव का नकारात्मक प्रभाव भाजपा और जनता दल यू पर साफ-साफ दिखने लगा है। जहां भाजपा इस मामले को लेकर डैमेज कंट्रोल में लग गई है, वहीं जद(यू) ने अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी आरजेडी के प्रति आक्रामक   रुख में परिवर्तन किया है। दरअसल, राजग गठबंधन में जद (यू) और भाजपा के पास दो प्रकार के समीकरण हैं। भाजपा के पास सांगठनिक क्षमता है तो जद (यू) के पास वोट बैंक है। ये दोनों पार्टियां मिलकर राजद का मुकाबला करने में सक्षम हो सकती हैं। यदि दोनों पार्टियां  इकट्ठी   न हों और एक-दूसरे को अपना वोट ट्रांसफर न करें तो दोनों को घाटा होगा जिसकी पूरी संभावना दिख रही है। भाजपा पिछली दफा खुद की बदौलत विधानसभा लड़ कर देख चुकी है। उस चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी लोजपा को मात्र दो सीटें मिली थीं। कुल मिलाकर यह चुनाव नितीश कुमार के लिए अहम है। नितीश शायद अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। भाजपा यदि चुनाव हार भी गई तो उसकी राजनीतिक सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन नितीश यदि चुनाव हार गए तो यह उनकी राजनीति के अंत जैसा होगा। नितीश कुमार हार की स्थिति में एक बार फिर पाला बदल सकते हैं और पुराने समाजवादी धड़ों को एक करने की कोशिश कर सकते हैें लेकिन संभवत: उनकी यह चाल भी इस बार कामयाब न हो।  (अदिति)