टोक्यो ओलम्पिक ने भारतीय हॉकी टीम के लिए फिर जगाई उम्मीद

टोक्यो में ओलम्पिक खेल होने जा रहे हैं और जैसे-जैसे तारीख नज़दीक आ रही है, उत्साह बढ़ता जा रहा है। हर गुजरते दिन के साथ अनिश्चितता दूर हो रही है। मेरे खेलने के दिनों से भी बहुत पहले से ओलम्पिक खेल कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं। ऐसे में टोक्यो 2020 बेहद खास होगा क्योंकि इसमें महामारी से बेहाल दुनिया में खुशी और उत्साह भरने की क्षमता है। हर बार जब ओलम्पिक खेल होते हैं, हमारी पसंदीदा यादों से निकलकर हमारे दिमाग में छोटी-छोटी क्लिप चलने लगती हैं। मैं आपसे कोई अलग नहीं हूं। मेरे पास मेरे दिनों की यादें हैं और विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय एथलीटों की मौजूदा टीम से अपेक्षाएं भी हैं। चूंकि मैं अपनी स्कूल टीम का नेतृत्व करता था, इसलिए मैं 70 के दशक की शुरुआत से ही भारतीय हॉकी के प्रदर्शन को देखता आ रहा हूं। मैं 1972 में म्यूनिख ओलम्पिक खेलों की रेडियो कमेंट्री सुनता था जब भारत ने कांस्य पदक जीता था। 1976 में मुझे ज्यादा चीजें पता थीं और जानता था कि एस्ट्रोटर्फ  मैदान पर शिफ्ट होने के बावजूद भारत टाईब्रेकर में ऑस्ट्रेलिया से प्लेऑफ  हारकर सेमीफाइनल से बाहर हो गया था। चार साल बाद मॉस्को गेम्स में भाग लेने जाने वाली टीम में चुने जाने पर मुझे बेहद खुशी हुई और जब मैं यूएसएसआर की राजधानी में उस समय महसूस की गई भावनाओं को याद करता हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मुझे पता था कि ओलम्पिक खेल का शिखर है लेकिन मुझे वहां जो अनुभव हुआ मैं उसके लिए तैयार नहीं था। यह कहना उचित होगा कि यह मेरे लिए एक बिल्कुल नई दुनिया थी। भारत को हॉकी में स्पेन, मेजबान यूएसएसआर और पोलैंड से अच्छी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। काफी हद तक नई टीम होने के बावजूद जिसमें कप्तान वी भास्करन और बीर बहादुर छेत्री के पास ओलम्पिक और एस्ट्रोटर्फ  पर खेलने का अनुभव था। हमने स्वर्ण पदक जीता और मैं अब भी उन यादों को संजोए हुए हूं। मुझे याद आता है कि कैसे पटियाला में अपने छोटे से शिविर में हमने एक ऐसे मैदान पर प्रशिक्षण लिया था जहां घास को काटा गया था और बिल्कुल अलग तरीके से सतह को तैयार किया गया था। इसके विपरीत मॉस्को में पिच को देखना और उसके साथ तालमेल बिठाना बिल्कुल चौंका देने वाला अनुभव था। हॉकी टीमों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा के लिए सरकार की ओर से काफी सहयोग मिलने से अब हालात बदल चुके हैं। पुरुषों की टीम उम्मीद जगाती है कि वह टोक्यो 2020 में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। मेरा मानना है कि टीम में यह साबित करने की क्षमता है कि वह अपने कुछ पूर्ववर्तियों से अलग है जिन्होंने ओलम्पिक खेलों में पहुंचने के लिए अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन वहां लड़खड़ा गए। पुरुष टीम स्थिरता और जीत हासिल करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करेगी, जो उसे 1 अगस्त को क्वार्टर फाइनल में बेहतर प्रदर्शन करने और आसानी से न मिलने वाले पदक को जीतने का विश्वास दिलाएगी। जहां तक महिला टीम की बात हैए मैं उनके क्वॉलिफाई करने और एफआईएच रैंकिंग में ऊपर उठने के लिए किए अच्छे प्रदर्शन की सराहना करता हूं। इसे क्वॉर्टर फाइनल में भी देखना शानदार होगा। ओलम्पिक खेलों को देखने पुरानी यादों को ताजा करने और जश्न मनाने के लिए कुछ नई और अद्भुत यादों को जोड़ना मेरे उत्साह को दोगुना करने वाला होगा। (पूर्व राष्ट्रीय कोच)