क्या अडानी-मोदी प्रकरण 2024 के लोकसभा चुनावों में मुख्य मुद्दा होगा ?

 

नरेन्द्र मोदी सरकार कांग्रेसी सांसद राहुल गांधी को तब तक संसद में बोलने नहीं देगी, जब तक कि वह सरकारी फरमान नहीं मान लेते। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को तो भूल ही जाइए। उनके पास तो सरकार के खिलाफ जाने का कभी कोई मौका नहीं रहता। फिर जहां तक भाजपा के बाकी लोगों की बात है, जिनमें वे भी शामिल हैं जो संसद सदस्य नहीं हैं, उन्होंने तो कांग्रेस-विरोध की जैसे शपथ ले रखी है।
भाजपा के कई सूत्रों के अनुसार पार्टी ने अपनी सरकार को भरोसा दिला दिया है कि राहुल गांधी ने लोकसभा में अपना पक्ष रखने का अधिकार ही खो दिया है। उन पर एकतरफा आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने लंदन में अपने मन की बात कह कर भारत के प्रति एक पवित्र करार को तोड़ा है, जबकि अपनी बात कहना लोकतंत्र की असली जननी है। इसके अलावा, भाजपा को पूरा यकीन है कि राहुल गांधी माफी नहीं मांगेंगे और कि यह वायनाड के सांसद को सरकार को बेपर्द करने का अवसर देने की तुलना में भाजपा और सरकार के अनुकूल ही बैठता है। इसीलिए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राहुल गांधी को पहले माफी मांगनी चाहिए और उसके बाद ही सदन में अपने मन की बात कहने का अवसर मिलेगा।
आप देखिए कि सरकार और भाजपा को किस प्रकार देर से पता चला कि वे अपने ही बुने हुए एक जाल में स्वयं जाकर फंस गये हैं। उन्होंने स्वेच्छा से अपने सिर को एक फटी हुई बांस में फंसा लिया है। अगर उन्होंने राहुल को संसद में बोलने नहीं दिया तो वे सही साबित होंगे कि भाजपा के शासन में भारत का संसदीय लोकतंत्र मर चुका है और विपक्ष को संसद में बोलने की अनुमति तक नहीं दी जा रही है।
इससे भी बदतर, अगर माइक और संसदीय मंच, दोनों उन्हें दे दिये गये, तो यह नहीं कहा जा सकता कि आगे क्या होने वाला है अथवा राहुल क्या कहेंगे, राहुल क्या मांग करेंगे और मोदी-अडानी और हिंडनबर्ग के इर्द-गिर्द बुने गये कथित कवर-अप का क्या परिणाम होगा? क्या होगा अगर असली कहानी, सच्ची कहानी, राहुल के बोलने के साथ ही सुलझने लगे? न जाने और ऐसे कितने सवाल उभर आयेंगे।
इसलिए अपेक्षाओं के अनुरूप, संसद के दोनों सदन हंगामे के साथ खुले और लगातार हंगामे के कारण एक और दिन का स्थगन होता रहा। एक दिन पहले जब राहुल गांधी ‘अपनी बात बोलने’ आये तो फिर यही हंगामा दोहराया गया। राहुल गांधी के शब्द प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रीय और वैश्विक योजनाओं के लिए घातक साबित हो सकते हैं। राहुल गांधी मोदी के दोस्त नहीं हैं और वह ‘मोहब्बत की दुकान’ से सीधे संसद नहीं आये हैं। इसके अलावा, विपक्षी दलों ने अडानी-हिंडनबर्ग पर जेपीसी जांच की अपनी मांग पर अभी तक चुप्पी नहीं साधी है, हालांकि आरोप लगाए गए थे कि दोनों सदनों में हंगामे के लिए सदन के अंदर ‘ऑडियो’ को म्यूट कर दिया गया था। ऐसा लग रहा था कि जिसके हाथ में माइक्रोफोन था, वह भाजपा का प्रशंसक था और इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने साबित करना चाहता था।
कांग्रेस ने दुनिया को यह बताने के लिए यह ट्वीट किया ‘प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त के लिए सदन मूक है।’ लोकसभा में हंगामे के केन्द्र में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी नज़र आये। उनके चेहरे और हाव-भाव से ऐसा लग रहा था कि वह अपनी बात बोलने के लिए उत्सुक हैं, लेकिन यह बात और साफ  होती जा रही थी कि सदन चलाने का फैसला स्पीकर के हाथ में नहीं है।
‘राहुल गांधी जवाब देना चाहते हैं’ बनाम ‘पहले वह माफी मांगें’ का विवाद दोनों सदनों में अभी बना रहेगा। भाजपा का फॉर्मूला राहुल गांधी से पहले माफी मांगने की मांग करके उन्हें अपमानित करना है। यह तब अधिक स्पष्ट हुआ जब राहुल गांधी की लंदन की टिप्पणियों को भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला द्वारा ‘घृणित और गंभीर रूप से अपमानजनक’ करार दिया गया। पूनावाला बहुत पहले गांधी परिवार के प्रति बेहद वफादार हुआ करते थे।
भाजपा का राग अलापना कि ‘एक परिवार का अहंकार’ ‘संसद की संस्था’ से बड़ा नहीं है, उसके इस विश्वास का प्रकटीकरण है कि यह बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा प्रतिध्वनित होता है। पूनावाला ने ट्वीट किया, राहुल ने विदेशी धरती पर विदेशी हस्तक्षेप की मांग करके हमारी संप्रभुता के खिलाफ एक अति गंभीर अपमानजनक टिप्पणी की है। उन्होंने कहा ‘आप पहले संसद को नीचा दिखाकर बाद में इसी का सहारा नहीं ले सकते। पहले माफी मांगो देश से’।
हालांकि इस आत्मतुष्टि के पीछे कहे सवाल भी हैं जैसे कि क्या होगा अगर राहुल गांधी माफी मांगने से इनकार कर दें? क्या होगा अगर कांग्रेस मोदी के नेतृत्व वाले भारत के बारे में उन सभी बातों को दोहराये जो उन्होंने अपने लंदन में उजागर की थीं? अनजाने में, इसकी घोषणा किये बिना या बाकी विपक्षी पार्टियों के इससे सहमत हुए बिना, राहुल गांधी विपक्ष के एक बड़े नेता तथा प्रधानमंत्री पद का चेहरा बने हैं। शहजाद पूनावाला इसे स्वीकार नहीं करेंगे परन्तु ‘मोदी-अडानी-हिंडनबर्ग’ 2024 के लिए विपक्ष का मुख्य चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। 1989 के लोकसभा चुनावों में, विपक्ष ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ  बोफोर्स का हौवा खड़ा किया और चुनाव जीता। अब 35 साल बाद क्या 2024 के चुनावों में वही खेल दोहराया जा सकता है जब इस बार राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी ने भाजपा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला है। (संवाद)