इंडिया-यूरोप आर्थिक गलियारे से आसियान को भी फायदा होगा

आपने सुना होगा कि आज से पचास साल पहले तब के कलकत्ता से लंदन तक बस चला करती थी। आज की पीढ़ी को शायद यह आश्चर्यजनक लगे लेकिन तब 20,000 किलोमीटर का सफर तय करने वाली यह बस कोलकत्ता व लन्दन के बीच बेल्जियम, पश्चिम जर्मनी, ऑस्ट्रिया, यूगोस्लाविया, बुल्गारिया, तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान, पश्चिम पाकिस्तान से गुजरती थी। तब यात्री कार्गो के रूप में सामान भी पहुंचते होंगे। दुनिया भर के देशों में बढ़ते विवाद की वजह से आज जब यह स्वप्न हो चला था, ऐसे में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और भारत की अध्यक्षता में हुए जी-20 सम्मिट ने इसे संभव कर दिखाया है।  जी-20 की इस घोषणा भारत-यूरोप आर्थिक गलियारे से भारत ही यूरोप से नहीं जुड़ेगा, अपितु भारत आसियान देशों का अगुवा बन इसे पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र को भी इस गलियारे के माध्यम से दुनिया से जोड़ेगा।
यह आर्थिक गलियारा दोनों महाद्वीप में समृद्धि तो लाएगा ही लाएगा तेल की आय खोने का भय लिए हुए खाड़ी देशों के लिए संजीवनी का काम करेगा। यह कॉरिडोर चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प  होगा।  यह मार्ग 6 हजार किमी लम्बा होगा जिसमें सड़क मार्ग 3500 कि.मी. व शेष समुद्र मार्ग होगा। विशेषज्ञों के अनुसार इसके तैयार होने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में लगभग 40 फीसदी समय की बचत होगी। यूरोप तक इंटरकनेक्टेड रेल और शिपिंग के माध्यम से सीधी पहुंच से भारत में विदेशी व्यापार सस्ता और आसान होगा। इस प्रोजेक्ट के कारण भारत और अमरीका पहली बार मध्य-पूर्व में साझेदार बने हैं। मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी के मामले पाकिस्तान सबसे बड़ी बाधा था, अब उसका तोड़ मिल गया है। अरब देश एक साथ पूरब और पश्चिम को जोड़ने के केंद्र बिंदु होंगे। संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी की सरकार भी भारत के साथ स्थायी कनेक्टिविटी बनाने के लिए इच्छुक हैं। अमरीका को भी उम्मीद है कि इस प्रोजेक्ट से अरब क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे।
इस पूरे रास्ते में मुख्य भूमिका रेलमार्ग और समुद्री जलमार्ग की होगी जिनके जरिए एशिया से यूरोप तक परिवहन किया जाएगा। इस गलियारे के जरिए भारत में बना सामान पहले समुद्र के रास्ते यूएई जाएगा, फिर वहां से सऊदी अरब, जॉर्डन होते हुए रेलमार्ग से इज़रायल के हाइफा बंदरगाह तक पहुंचेगा। इसके बाद समुद्री मार्ग से यूरोप तक पहुंच सकेगा। यह प्रोजेक्ट पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट का हिस्सा होगा जो कि जी-7 देशों का प्रयास है, इसके तहत विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए फंडिंग दी जाती है। इस प्रकार दो महाद्वीपों के देश ही नहीं कनेक्ट हुए, जी-20 और जी-7 दो समूहों के प्रोजेक्ट भी साझा उद्देश्यों के तहत जुड़ गए। बाहर निकल कर आ रही जानकारी के मुताबिक इस गलियारे में रेल लिंक के साथ-साथ एक इलेक्ट्रिसिटी केबल, एक हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डाटा केबल होगी। इस प्रोजेक्ट को महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच हरित और डिजिटल पुल भी बताया जा रहा है।
व्हाइट हाउस ने जो बयान जारी किया है उसके मुताबिक इसमें दो गलियारे होंगे—पहला ईस्ट कॉरिडोर होगा जो भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा और दूसरा नॉर्दर्न कॉरिडोर जो अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा। 
इस प्रोजेक्ट के जरिए न सिर्फ  भारत का व्यापार यूरोप और खाड़ी देशों तक पहुंचेगा अपितु आसियान देशों समेत नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों का व्यापार भी बढ़ेगा जो सड़क मार्ग से भारत से जुड़े हुए हैं।
जी-20 में हुए इस घोषणा से गल्फ  कोआपरेटिव कौंसिल (जीसीसी)भारत के लिये पड़ोस का सबसे खास और महत्वपूर्ण रणनीतिक संगठन बन गया ह। पहले भी यह भारत के एक बड़े हिस्से के लिए मनी आर्डर इकॉनमी का स्रोत भी रहा है। यह रोज़गार और तेल के अलावा एक निवेशक के रूप में भारत के लिए अवसरों का द्वार भी है। जीवाश्म ईंधन के प्रचूर भंडार के कारण इस सदी में जीसीसी देशों ने अकूत दौलत कमाई जो अभी भी कइयों के पास सरप्लस के रूप में हैं।
 धन की मात्रा हमेशा निवेश के विकल्प खोजती है। उनकी भौगोलिक परिस्थिति ऐसी नहीं है कि  वहां बहुत ज्यादा निर्माण के कारखाने लग सकते हैं क्यों कि  बहुतायत एरिया रेगिस्तान है। तेल और गैस से कमाए गए उनके अकूत धन को एक मुफीद इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन की दरकार है। इससे पहले कि उनसे सटा यूरोप या दूर बैठा अमरीका या पड़ोस का अपना चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश या वियतनाम उनके निवेश को अपनी तरफ  खींचे, भारत को प्रोएक्टिव होकर पहल करते हुए खाड़ी देशों के इस धन को, जो आज है या भविष्य में वह निवेश करने वाले हैं, को भारत की तरफ  मोड़ना चाहिए। और इसीलिए जी-20 के आयोजन के बाद सऊदी के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान एक दिन राजकीय यात्रा पर रहे और द्विपक्षीय वार्ता की। यह गलियारा जीसीसी देशों को सक्रिय कर देगा और व्यापार को लेकर उनके भीतर नई दृष्टि, नई जान और उत्साह आएगा।
आज जीसीसी देशों को चिंता है कि अपने पैसों को कहां लगायें घ् भविष्य में उनके आय का स्रोत क्या हो घ् उनकी परिस्थिति वहां कुछ करने की सीमित है। केवल टूरिज्म या चुनिंदा कामों के आधार पर अपना भविष्य वह सुरक्षित रख नहीं सकते। ऐसे में वह चाहेंगे कि जीसीसी में वह बैठे रहें और दुनिया के अच्छे निवेश डेस्टिनेशन पर उनका पैसा काम करता रहे और यही भारत के लिए ट्रिगर पॉइंट है जिस पर अब काम चालू हो गया और पहला बुनियादी काम यह कॉरिडोर बना।
खड़ी देशों में भारत के समृद्ध प्रवासी भी है, जो अपनी एक जड़ हमेशा भारत में रखना चाहता हैं। अगर मातृभूमि एवं अन्य निवेश कार्यक्रमों के तहत उन्हें भारत से जोड़ा जाये तो कम्युनिटी डिवेल्पमेंट के प्रोजेक्ट के साथ भावनात्मक निवेश की बड़ी मात्रा भी भारत में आ सकती है। इसके लिए चाहे तो सरकार प्रवासी संगठनों को प्रोत्साहित कर सकती है।  भारत के  लोग ही खाड़ी देशों में अपने देश के निवेश अवसरों के ब्रांड अम्बेस्डर हो सकते हैं। चूंकि भारत का प्रवासी समाज वहां है और अरब के निवेशक वहां हैं। दोनों सामाजिक समूह वहां अपनी आपसी समझ विकसित कर भारत में निवेश कर सकते हैं। (युवराज)