लव जेहाद पर कानूनी मतभेद

हिन्दू युवती के मुस्लिम युवक से विवाह की वैधता पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ के दो भिन्न आदेशों से विषम स्थिति पैदा होती है। इससे कानूनी भ्रांति की आशंका उपजी है। न्यायमूर्ति उमेशचन्द्र त्रिपाठी ने गत माह अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा था कि महज विवाह के लिये धर्म परिवर्तन करना अवैध है। न्यायमूर्ति त्रिपाठी (नियुक्त 27 सितम्बर 2013) ने कहा कि ऐसी शादी को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है। इस निर्णय के कुछ दिनों बाद (नवम्बर 2020) इलाहाबाद हाई कोर्ट में ही न्यायमूर्ति जहांगीर जमशेद मुनीर साहब, (नियुक्त 22 सितम्बर 2017) ने आदेश दिया कि ‘विपरीत धर्मों के याचियों को अपनी मर्जी से कहीं भी किसी के साथ भी रहने का अधिकार है।’
इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा कर दी कि ‘प्रदेश में लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाया जायेगा।’ जौनपुर की आमसभा को संबोधित करते हुए योगी ने कहा कि ऐसे विषम धर्मावलम्बियों का विवाह अस्वीकार्य है। उत्तर प्रदेश की ही तर्ज पर पड़ोसी मध्य प्रदेश के भाजपाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने भी ‘लव जिहाद’ वाले विवाह पर पाबंदी का ऐलान कर दिया। अन्य भाजपा शासित प्रदेशों का निर्णय प्रतीक्षित है। अपने निर्णय में न्यायमूर्ति महेश चन्द्र त्रिपाठी ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2014 में प्रदत्त ‘नूरजहां उर्फ अंजलि मिश्र’ वाली अन्तर्धार्मिक शादी पर निर्णय का उल्लेख किया है। उच्चतम न्यायालय ने हिन्दू युवती (अंजलि) के मुस्लिम युवक से विवाह करने को गैर-कानूनी करार दिया।  इसमें बिना अकीदतमन्द हुये शादी वर्जित कर दी गई थी। अत: सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय ही सर्वमान्य होगा।न्यायमूर्ति जहांगीर जमशेद मुनीर का निर्देश था कि बालिग लड़का व लड़की अपनी मर्जी से किसी भी व्यक्ति के साथ रह सकते हैं। उनके जीवन में हस्तक्षेप करने का किसी को अधिकार नहीं है। हालांकि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म अपनाने का अधिकार देता है। विशेष विवाह अधिनियम 1955 के तहत बिना धर्म बदले विपरीत धर्म को मानने वाले से शादी करके वैवाहिक जीवन बिता सकते हैं। यह कानून सभी धर्मों पर लागू है।  न्यायमूर्ति मुनीर ने विपरीत धर्मों के याचियों को अपनी मर्जी से कहीं भी किसी के साथ रहने के लिए स्वतंत्र कर दिया। सहारनपुर की पूजा उर्फ जोया तथा शाहवेज की याचिका पर यह फैसला दिया गया। पूजा ने घर से भागकर शाहवेज से शादी कर ली थी। जब परिवार को पता चला तो उसे घर में नज़रबंद कर दिया गया, जिस पर यह याचिका दाखिल की गई। हाई कोर्ट ने याची लड़की को पेश करने का निर्देश दिया। पिता द्वारा पेश न करने पर एसपी सहारनपुर को लड़की को पेश करने का आदेश दिया गया। कोर्ट में लड़की ने कहा कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है। उसे अपनी मर्जी से जाने के लिए स्वतंत्र कर दिया गया।इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति महेशचन्द्र त्रिपाठी के आदेश के बाद कोर्ट के दूसरे आदेश में भिन्न सिद्धांत दिया गया है। न्यायमूर्ति त्रिपाठी ने विपरीत धर्म के जोड़े की याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को संबंधित मैजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने की छूट दी थी। दरअसल, याची ने परिवार वालों को उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने पर रोक लगाने की मांग की थी। इस मामले में अदालत ने विवाहित जोड़े की याचिका पर हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि ‘एक याची मुस्लिम तो दूसरा हिंदू है।’ लड़की ने 29 जून 2020 को इस्लाम धर्म स्वीकार किया और एक महीने बाद 31 जुलाई को विवाह कर लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसके लिए नूरजहां बेगम केस के फैसले का हवाला दिया जिसमें कोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। धर्म बदलने के लिए आस्था और विश्वास का होना बेहद ज़रूरी है। सिर्फ शादी को वजह नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इस्लाम के बारे में बिना जाने और बिना आस्था और विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा, ऐसा करना इस्लाम के भी खिलाफ है। प्रियांशी उर्फ समरीन व अन्यों की ओर से याचिका दाखिल की गई थी। अब आगे की न्यायिक प्रक्रि या तथा उत्तर प्रदेश विधानमंडल द्वारा लव जिहाद पर कानून की उत्सुकता बनी रहेगी। (युवराज)