आशंकित है देश में भीषण बेरोज़गारी का दौर

निश्चित तौर से कोविड 19 ने पूरे विश्व को बेरोजगारी को एक ऐसा अनिश्चितकालीन दौर में झोंक दिया है जिसके परिणाम की कल्पना ही भयातुर कर देती है। ऐसी स्थिति में चंद नौकरशाहों के इशारे पर काम करने वाली भारतीय केन्द्र और राज्य की सरकार सिर्फ  मनरेगा और छोटे मोटे अन्य माध्यम से कितने लोगों को कितने दिन का, कितने मानदेय का रोजगार उपलब्ध करायेगी, इसका स्पष्ट खाका अब तक तैयार नहीं है। हालांकि केन्द्र और राज्य सरकारें लगातार दावा कर रही हैं कि शहरों से गांवों तक पहुंचे मज़दूरों एवं कामगारों को रोजगार मुहैया कराया जाएगा। लेकिन देश के जो आकड़े हैं, वे काफी चौंकाने वाले हैं। पलायन के बाद बेरोजगारी की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए इस संख्या पर नजर जरूर डालनी चाहिए। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में आंतरिक प्रवासियों की संख्या 45.36 करोड़ यानि कि आबादी का लगभग 37-38 प्रतिशत है। दूसरा आकड़ा यह कि अन्तर्राज्यीय प्रवासी कामगारों की देश में जनसंख्या छह करोड़ पचास लाख है। इसमें 33 प्रतिशत मज़दूर हैं।  लॉकडाउन की शुरुआत और पलायन के बाद बेरोजगारी का खौफनाक चेहरा सामने आना शुरू हुआ है। कोरोना के इस संक्रमण काल में मात्र तीन माह के भीतर देश का लगभग हर चौथा व्यक्ति बेरोज़गारी की कतार में खड़ा हो चुका है। फिलहाल के जो आकड़े समाने आए हैं उनके मुताबिक भारत में 28 प्रतिशत से अधिक कार्यबल बिना किसी काम के है, जिससे सामाजिक ताने-बाने को खतरा बढ़ गया है और लाखों लोगों के जीवन में असहनीय तकलीफ  पैदा हो गई है। ये अनुमान सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी  द्वारा हाल ही में किए गए साप्ताहिक नमूना सर्वेक्षणों के नवीनतम दौर (19 अप्रैल) से निकले हैं। हालांकि, विश्व स्तर के अनुभव से पता चलता है कि कई देश अर्थ-व्यवस्था को बंद किए बिना और इसके सभी परिणामों के बिना कोरोनो वायरस को नियंत्रित करने में कामयाब रहे हैं। वैसे भी लॉक डाउन से पूर्व बेरोजगारी दर पिछले महीनों में 7-8 प्रतिशत के बीच झूल रही थी, जो अपने आप में कोई बहुत सुखद स्थिति नहीं थी। लेकिन इस पर अब लॉकडाउन का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है क्योंकि लॉकडाउन की घोषणा के दिनों के दौरान बेरोजगारी दर में 28.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। लॉक डाउन के दौरान उद्योग, कार्यालय, दुकानें आदि बंद कर दिए गए हैं। इसके कारण विशाल अनौपचारिक क्षेत्र (उद्योग और सेवाओं दोनों में) पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं।  इस क्षेत्र में देश का करीब 44 करोड़ कार्यबल कार्यरत था, जो क्षेत्र कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र तक फैला हुआ है। इसको देखते हुए ही कृषि क्षेत्र के काम को तालाबंदी के दायरे से बाहर किया गया और किसी तरह  रबी की फसल की कटाई हो पाई थी। फिर भी, यह घोषणा इतने बेतरतीब तरीके से की गई कि सरकार की इस क्षेत्र को छूट देने की नीति कई खेतिहर मजदूरों को कटाई के पहले या फिर कटाई के बाद के काम के लिए प्रोत्साहित नहीं कर पाई। बेरोजगारी के इस संकट का एक और भी गंभीर पहलू यह है कि तालाबंदी शुरू होने के बाद से करीब 14 से 20 करोड़ लोग अपनी नौकरी खो चुके हैं। महामारी से पहले की अर्थ-व्यवस्था में मंदी ने महामारी के फैलने से ठीक पहले के महीनों में श्रम भागीदारी दर को लगातार कम कर दिया था। लॉकडाउन के लागू होने के बाद, नौकरी के नुकसान में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है और सिर्फ पांच दिनों के भीतर-भीतर लगभग 10 करोड़ लोगों के रोजगार खोने की सूचना गम्भीर संकेत दे चुकी थी। तब से स्थिति और अधिक खराब हुई है क्योंकि 19 अप्रैल के नवीनतम अनुमान के अनुसार केवल 27.1 करोड़ लोग ही कार्यरत हैं जो अपने आप में बहुत कम संख्या है। यह कुल कार्यबल का मात्र 27 प्रतिशत हिस्सा है। मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि किसी भी मजदूर को उसकी नौकरी से नहीं निकाला जाएगा और तालाबंदी अवधि के दौरान सभी को मालिकों द्वारा वेतन या उनकी मजदूरी का भुगतान किया जाएगा। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से निपटने के लिए लागू की गई देशबंदी और आर्थिक मंदी के कारण देश के लगभग 40 फीसदी लोग बेरोजगारी का शिकार हो गए हैं। असली समस्या और परेशानी तो लॉकडाउन खत्म होने के बाद पैदा होगी। लॉकडाउन की वजह से महानगर व शहरों में कल कारखाने,व्यापारिक और व्यवसायिक संस्थान बंद हो गए हैं जिसकी वजह से रोजगार छिन जाने के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर लाक डाउन के बावजूद अपने घर लौट गए हैं। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद यदि ये वापस महानगर और शहरों में लौटेंगे, तब दुबारा काम न मिलने पर उनकी स्थिति करता होगी। आर्थिक मंदी और लॉकडाउन दोनों की दोहरी मार ने बाजार को पूरी तरह से बेदम कर दिया है। छोटे और मध्यम दर्जे के उद्यमी व कारोबारी के पास अपना अस्तित्व बचाने के लिए कमचारियों की छंटनी करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है। निजी क्षेत्र में भी नौकरियां लगभग 24 फीसदी तक कम हो जाएंगी। कुल मिलाकर मौजूदा स्थिति को देखते हुए कोई इस बात का दावा नहीं कर सकता कि देश को बेरोजगारी के इस दौर से कब निजात मिलेगी।