रोगों को बुलावा है चिड़चिड़ापन

आजकल जीवन की व्यस्तता और भागदौड़ भरी जिंदगी जीते मानव में सहनशीलता और धीरज की इतनी कमी आ गई है कि वह जरा जरा सी बात और छोटी-छोटी घटनाओं को लेकर उत्तेजित हो उठता है। कभी कभी तो इतना आवेशग्रस्त हो जाता है कि अकारण अपना आपा खो बैठता है जिसके कारण अप्रत्याशित घटनाएं जन्म ले लेती हैं।  आज तो हाल यह है कि असहनशीलता के कारण जरा-जरा सी बात को लेकर लोग अचानक क्रोध  में आकर बड़े बड़े अपराध कर बैठते हैं। यह याद रखने वाली बात है कि मनुष्य का हर समय क्रोधित , आवेश या चिड़चिड़ा बने रहना उसके स्वास्थ्य पर सीधा प्रहार करता है जिस कारण शरीर में अनेक व्याधियां घर कर सकती हैं। यह भी सच है कि जब मनुष्य का मन:संस्थान आवेशग्रस्त रहता है तो वह शरीर के दूसरे अवयवों की गतिविधियों को भी अस्तव्यस्त करके रख देता है। उसका स्नायु संस्थान स्वाभाविक नहीं रहता। ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है तथा पाचनतंत्र गड़बड़ा जाता है। शरीर में उत्साह की कमी आकर अनमनेपन और थकान के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं।यह भी याद रहे कि उत्तेजित मन स्थिति या आवेशग्रस्त रहने से इसका प्रभाव मनुष्य की नींद पर ही नहीं पड़ता बल्कि शरीर के दूसरे हिस्से भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। साथ ही साथ चिड़चिड़े मिजाज का व्यक्ति दूसरों के तिरस्कार का कारण बन जाता है। आज मानव जिस माहौल में जी रहा है वह ऐसा है कि हर तरह का व्यक्ति किसी न किसी रूप में ऐसी परिस्थितियों से घिरा हुआ है जिनसे उसका दिल और दिमाग खिन्न उद्विग्न बना रहता है। बच्चे तक भी बड़ों से समुचित स्नेह नहीं रखते। अपने लिये उन्हें बड़ों से समय और प्यार न मिल पाने के कारण निराश और खिजे रहते हैं।यह तो स्पष्ट है कि आवेश और तनाव की मार से इस आधुनिक युग में कोई भी अछूता नहीं है। ऐसे में बस एक ही रास्ता है कि मनुष्य मस्तिष्क को शांत रखने में इच्छित परिस्थितियों का इंतजार न करे। इसके लिये उसे अपने सोचने समझने के तरीके और तालमेल बिठाने की कला सीखने और अभ्यास करने का प्रयत्नकरना चाहिये।

(स्वास्थ्य दर्पण)