‘भारत कोकिला’ सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनकी माता का नाम वरद सुंदरी था, वे कवयित्री थीं और बंगला में लिखती थीं। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था, जो एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। ‘भारत कोकिला’ के नाम से प्रसिद्ध हुई सरोजिनी ने मात्र 14 वर्ष की उम्र में सभी अंग्रेजी कवियों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। 1895 में हैदराबाद के निजाम ने उन्हें वजीफे पर इंग्लैंड भेजा। सरोजिनी नायडू एक प्रतिभावान छात्रा थीं। उन्हें इंग्लिश, बंगला, उर्दू, तेलुगु और फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था। नायडू के राजनीति में सक्रिय होने में गोखले के 1906 के कोलकाता अधिवेशन के भाषण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों के लिए भारतीय महिलाओं को जागृत किया। भारत की स्वतंत्रता के लिए विभिन्न आंदोलनों में सहयोग दिया। काफी समय तक वे कांग्रेस की प्रवक्ता रहीं। जलियांवाला बाग हत्याकांड से क्षुब्ध होकर उन्होंने 1908 में मिला ‘कैसर-ए-हिन्द’ सम्मान लौटा दिया था। उन्होंने भारतीय महिलाओं के बारे में कहा था, जब आपको अपना झंडा संभालने के लिए किसी की आवश्यकता हो और जब आप आस्था के अभाव से पीड़ित हों तब भारत की नारी आपका झंडा संभालने और आपकी शक्ति को थामने के लिए आपके साथ होगी और यदि आपको मरना पड़े तो यह याद रखिएगा कि भारत के नारीत्व में चित्तौढ़ की पद्मिनी की आस्था समाहित है। सिर्फ  13 वर्ष की उम्र में उन्होंने 1300 पंक्तियों की कविता ‘द लेडी ऑफ  लेक’ लिखी थी। फारसी भाषा में एक नाटक ‘मेहर मुनीर’ लिखा। ‘द बर्ड ऑफ  टाइम’, ‘द ब्रोकन विंग’, ‘नीलांबुज’, ट्रेवलर्स सांग उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं। 70 वर्ष की उम्र में 2 मार्च 1949 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका देहांत हो गया। स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाली सरोजिनी नायडू ने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कड़ा संघर्ष किया था।