मूल मंत्र

संत ने अपने एक शिष्य को एक मूल मंत्र देते हुए कहा कि इसे सुबह, दोपहर और शाम को दोहराते रहना। जब तक तुम इस मूल मंत्र को दोहराते रहोगे, तुम मेरे प्रिय शिष्य बने रहोगे। तुम्हारी शारीरिक और आध्यात्मिक शक्तियां बरकरार रहेगी। जब इस बात की जानकारी एक अन्य शिष्य को मिली तो वह संत के पास जाकर बोला- ‘गुरुवर! मैं भी तो आपका शिष्य हूं। मुझे भी वह मूल मंत्र देने की कृपा करें।’
संत मुस्कुराकर बोले- ‘वत्स! यह बात सही है कि तुम भी मेरे शिष्य हो, लेकिन वह मूल मंत्र हर किसी को नहीं दिया जा सकता। यदि तुम्हें मूल मंत्र प्रयोग के तौर पर देने की बात होती, तब भी मैं तुम्हें वह मूल मंत्र नहीं देता, क्योंकि तुम्हारे मांगने का यह तरीका गलत है। तुम्हें इस प्रकार मूल मंत्र मांगने नहीं आना चाहिए था।’
शिष्य बोला- ‘गुरुवर! मुझे किस प्रकार आपके पास आकर मूल मंत्र मांगना चाहिए था?’ संत बोले- ‘बहुत सावधानी से। मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि तुम्हारे पूछने का तरीका क्या है? इस प्रकार किसी के पास जाकर मांगना देने वाले को नाराज़ कर सकता है, लेकिन तुम अपने बुद्धि और विवेक से बहुत कुछ पा सकते हो। मांगने का तरीका न भूमिकाहीन होना चाहिए और न चाटुकारिता से भरा। तुम आसानी से समझ सकते हो कि इस समय तुम्हारा मन न किसी चीज को सीखने के लिए तैयार है, न उस पर काम करने के लिए।’

-पुष्पेश कुमार पुष्प
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