बेहतर पुनर्वास के बाद हटाई जाएं झुग्गी-बस्तियां  

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली और उसके आसपास रेल पटरियों के किनारे स्थापित झुग्गी बस्तियों को हटाने का आदेश दिया है। यह अतिक्र मण और अनियोजित विकास के खिलाफ एक पहल है। यह पूरे देश में प्रभावी हो सके तो बेहतर है। दिल्ली-एनसीआर में रेल पटरियों के दोनों ओर बड़ी संख्या में बसी झुग्गी-बस्तियों का मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष इसलिए पहुंचा क्योंकि ये बस्तियां गंदगी का गढ़ बनने के साथ प्रदूषण फैलाने का भी ज़रिया बनी हुई थीं। 
अकेले दिल्ली में 70 किलोमीटर रेल पटरियों के किनारे करीब 48 हज़ार झुग्गियां बसी हुई हैं। ये गंदगी और प्रदूषण फैलाने के साथ ही रेलवे की सुरक्षा के लिए खतरा भी हैं। हालांकि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी ने 2018 में ही इन झुग्गी बस्तियों को हटाने का आदेश दिया था लेकिन किन्हीं कारणों से उस पर अमल नहीं हो सका और वह भी तब जब ये झुग्गियां दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषित करने के साथ रेलवे की सुरक्षा के लिए खतरा भी बनी हुई थीं।  दुर्भाग्य से रेल पटरियाें के किनारे जो स्थिति दिल्ली में है, वही देश के अन्य हिस्सों और खासकर बड़े शहरों में भी है। कहीं-कहीं तो रेल पटरियों के बिलकुल करीब ऐसी भी बस्तियां हैं, जहां दो-तीन मंजिला इमारतें भी बनी हुई हैं और जिनमें हजारों लोग रहते हैं जिन कारणों से एनजीटी के आदेश के बाद भी ये झुग्गी बस्तियां नहीं हट सकीं। उनका संकेत उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी से मिलता है कि उसके फैसले के क्रियान्वयन में न तो कोई अदालती आदेश आड़े आना चाहिए और न ही किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप सहन किया जाना चाहिए।  झुग्गी बस्तियों में न तो सीवर की व्यवस्था होती है और न ही सफाई की। इस कारण वे वहां रहने वालों की सेहत के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती हैं। इसके अलावा वे वहां रह रहे लोगों की सुरक्षा के लिए भी खतरा बनती हैं। यह एक तथ्य है कि दिल्ली ही नहीं, देश भर में रेल पटरियों के किनारे झुग्गी बस्तियां इसलिए बस जाती हैं क्योंकि नेता उन्हें संरक्षण देते हैं। नेताओं के स्वार्थ के आगे नौकरशाह भी समस्या से मुंह फेरने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर झुग्गी बस्तियों से हटाए गए लोग कहां जाएंगे। हैरानी नहीं कि जल्द ही यह सवाल एक राजनीतिक मसला बन जाए। नि:संदेह भारत एक गरीब देश है और यहां करोड़ों लोग झुग्गी बस्तियों में रहने को विवश हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि रेल पटरियों के किनारे अतिक्र मण करने की छूट दे दी जाए। दुर्भाग्य से ऐसा ही हो रहा है।  यह एक हकीकत है कि देश के तमाम शहरों में इसी तरह रेल पटरियों के किनारे और साथ-साथ राजमार्गों के किनारे तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भी झुग्गी बस्तियां देखी जा सकती हैं। इनमें वह मानव संसाधन रहता है, जो शहरों की तमाम ज़रूरतें पूरी करता है। कोई कामगार के रूप में, कोई ड्राइवर या ऑटो रिक्शा चालक, कार्यालय सहायक या फिर घरेलू सहायक के रूप में। रेहड़ी-पटरी वाले और निर्माण कार्यों में लगे मजदूर भी ऐसी ही बस्तियों में रहते हैं।  कई बार तो ये बस्तियां इतनी बड़ी हो जाती हैं कि उन्हें हटाने के बजाए उनका नियमितीकरण करने पर विचार होने लगता है क्योंकि वहां रहने वाले राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक बन जाते हैं। चूंकि इन बस्तियों में आबादी का घनत्व ज्यादा होता है, इसीलिए वहां गंदगी भी खूब होती है। इस समस्या से सरकारें अनभिज्ञ नहीं लेकिन वे उसकी अनदेखी ही करती हैं। 
झुग्गी बस्तियों में रहने वालों के बेहतर पुनर्वास के बगैर इन बस्तियों को हटाने का कोई मतलब नहीं। हमारे नीति-नियंताओं और खासकर शहरों के योजनाकारों को यह भी समझना होगा कि झुग्गी बस्तियों को हटाना समस्या का सही समाधान नहीं है। इन झुग्गी बस्तियों को आज एक जगह से हटाएंगे तो कल दूसरी जगह बस जाएंगे। शहराें को झुग्गी बस्तियों से छुटकारा तभी मिल सकता है, जब उनमें रहने वाले गरीब वर्ग के लिए विभिन्न सरकारी विभागों, छावनियों की ज़मीनों पर बहुमंजिला आवासीय इमारतें बनाई जाएं। हमारी शहरी जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है। भविष्य में हमारी आधी से अधिक आबादी शहरों में रहने लगेगी। स्वाभाविक है कि स्वच्छता की चुनौती भी इसके साथ और विकराल होती जाएगी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि स्वच्छता मानक सभी पक्षों के सक्रि य सहयोग से ही सुधर सकते हैं। इसके अतिरिक्त वर्षों से जमा मलिनता को दूर करने के लिए भी सामुदायिक एकीकरण की आवश्यकता होगी। 
हालांकि अब आर्थिक रूप से कमज़ोर तबकों के लिए सरकारी आवास बनने शुरू हो गए हैं लेकिन आमतौर पर वे शहरों के बाहरी इलाकों में ही बन रहे हैं। ज़रूरी यह है कि कामगारों-मजदूरों को शहरों के अंदरूनी हिस्से में बसाने की ठोस योजनाएं बनें। ऐसी योजनाएं तभी कारगर हो सकती हैं, जब शहरों में खाली पड़ी उन जमीनों की तलाश की जाए जिनका सदुपयोग नहीं हो रहा है। चूंकि आबादी बढ़ रही है, इसलिए गरीबों के लिए बनाई जाने वाली बहुमंजिला इमारतों के रख-रखाव की भी कोई ठोस व्यवस्था बनानी होगी। इसके लिए भले ही न्यूनतम शुल्क लिया जाए लेकिन साफ-सफाई को अतिरिक्त महत्त्व देना होगा। (अदिति)